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________________ भगवान महावीर जीवन और सिद्धान्त / २३ ३. धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा और हिंसापूर्ण उपासनाएं करने वाला अधर्म को प्रोत्साहन देता है । 1 ४. चरित्रहीन व्यक्ति को सम्प्रदाय और वेश त्राण नहीं देते । धर्म और धर्म-संस्था एक नहीं है। ५. भाषा का पांडित्य और विद्याओं का अनुशासन मन को शांत नहीं करता । मन की शांति का एक ही साधन है, वह है धर्म | निर्वाण 1 आत्मानुशासन के होने पर ही दूसरे शासन सफल हो सकते हैं, इस आधार - भित्ति पर महावीर ने जनमानस को धर्म-शासन में दीक्षित किया। ईस्वी पूर्व ५२७ में उनका निर्वाण हुआ। निर्वाण से पूर्व भगवान ने दो दिन का उपवास किया। उस अवधि में वे धर्म का प्रवचन करते रहे । पर्यंकासन में बैठे हुए कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया । मल्ल और लिच्छवि गणतंत्र के शासकगण और जनता ने दीप जलाकर निर्वाण-उत्सव मनाया। ज्योति की स्मृति में ज्योतिपर्व संस्थापित हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003070
Book TitleJain Darshan ke Mul Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2001
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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