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भगवान महावीर : जीवन और सिद्धान्त / २१
३. अपरिग्रह
मन में ममत्व का भाव न होना अपरिग्रह है। वस्तुओं का संग्रह न करना अपरिग्रह है। महावीर ने हिंसा और परिग्रह को तोड़कर नहीं देखा। मन में हिंसा का भाव (अहंकार या ममकार) होता है तब संग्रह करने की वृत्ति जागती है और जब मनुष्य संग्रह करता है तब उसकी हिंसा प्रबल हो उठती है। इस प्रकार हिंसा के लिए संग्रह और संग्रह के लिए हिंसा-यह चक्र चलता रहता है।
महावीर ने अपरिग्रह के इन सूत्रों का प्रतिपादन किया१. अपने शरीर और परिवार के प्रति होने वाले ममत्व को कम करो। २. उपभोग की वस्तुओं का संयम करो। ३. धन-सम्पदा बढ़ाने या उसकी सुरक्षा करने के लिए फैलाव मत
करो-विस्तारवादी नीति मत अपनाओ। ४. दूसरों के स्वत्व पर अधिकार करने के लिए आक्रमण मत करो।
४. पुरुष और पौरुष १. मनुष्य अपने सुख-दुःख का कर्ता स्वयं है। अपने भाग्य का
विधाता वह स्वयं है। २. राजा देव नहीं है, ईश्वर का अवतार नहीं है। वह मनुष्य है, उसे
देव मत कहो, सम्पन्न मनुष्य कहो। ३. ग्रन्थ मनुष्य की कृति है। पहले मनुष्य, फिर ग्रन्थ। कोई भी ग्रंथ
ईश्वरीय नहीं है। ४. विश्व की व्यवस्था शाश्वत द्रव्यों के योग या परस्परापेक्षिता से स्वतः संचालित है। वह किसी एक सर्वशक्तिमान सत्ता द्वारा
संचालित नहीं है। ५. यह विश्व छह द्रव्यों की संघटना है। वे ये हैं
* धर्म-गतितत्त्व। * अधर्म-स्थितितत्त्व। * आकाश।
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