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२० / जैन दर्शन के मूल सूत्र
खरीदकर दास बना लेता था। महावीर ने इस हिंसा के प्रति जनता का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने एक सूत्र दिया-दास बनाना हिंसा है, इसलिए किसी को दास मत बनाओ। ५. उस समय के पुरुष स्त्रियों को और शासक वर्ग शासितों को
पराधीन रखना अपना अधिकार मानते थे। महावीर ने इस ओर जनता का ध्यान खींचा कि दूसरों को पराधीन बनाना हिंसा है। उन्होंने अहिंसा का सूत्र यह दिया- दूसरों की स्वाधीनता का
अपहरण मत करो। ६. उस समय उच्च और नीच-ये दो जातियां समाज-व्यवस्था द्वारा स्वीकृत थीं। उच्च जाति नीच जाति से घृणा करती थी। उसे अछूत भी मानती थी। महावीर ने इस व्यवस्था को अमानवीय प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा-जाति वास्तविक नहीं है। जाति-व्यवस्था परिवर्तनशील है, काल्पनिक है। इसे शाश्वत का रूप देकर हिंसा को प्रोत्साहन मत दो। किसी मनुष्य से घृणा मत करो। उन्होंने सब जाति के लोगों को अपने संघ में सम्मिलित कर 'मनुष्य जाति एक है'-इस आंदोलन को गतिशील बना दिया। ७.उस समय स्वर्ग की प्राप्ति के लिए पशु की बलि दी जाती थी। महावीर ने कहा-स्वर्ग मनुष्य का उद्देश्य नहीं है, उसका उद्देश्य है निर्वाण-परमशांति। पशुबलि से स्वर्ग नहीं मिलता। जो पशुबलि देता है, वह मूक पशुओं की हिंसा कर अपने लिए
नरक का द्वार खोलता है। ८. उस समय माना जाता था कि युद्ध में मरने वाला स्वर्ग में जाता
है। महावीर ने इसकी अवास्तविकता का प्रतिपादन करते हुए कहा- 'युद्ध हिंसा है। वैर से वैर बढ़ता है। उससे समस्या का
समाधान नहीं होता।' ९. आक्रमण मत करो। मांसाहार और शिकार का वर्जन करो।
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