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भगवान महावीर : जीवन और सिद्धान्त / १९
१. अनेकांत और स्याद्वाद १. तत्त्व को अनन्त दृष्टिकोण से देखना अनेकांत और उसका
सापेक्ष प्रतिपादन करना स्याद्वाद है। सत्य अनन्त-धर्मा है। एक दृष्टिकोण से उसके एक धर्म को देखकर शेष अदृष्ट धर्मों का खंडन मत करो। २. एक ज्ञात धर्म को ही सत्य और शेष अज्ञात धर्मों को असत्य
मत कहो। ३. सत्य की सापेक्ष व्याख्या करो। अपने विचार का आग्रह मत
करो। दूसरों के विचारों को समझने का प्रयत्न करो। ४. प्रत्येक विचार सत्य हो सकता है और प्रत्येक विचार असत्य हो
सकता है-एक विचार दूसरे विचारों से सापेक्ष होकर सत्य होता है। एक विचार दूसरे विचारों से निरपेक्ष होकर असत्य हो जाता
है।
५. अपने विचार की प्रशंसा और दूसरे के विचार की निन्दा कर
अपने पांडित्य का प्रदर्शन मत करो।
२. अहिंसक क्रान्ति
राग और द्वेष से मुक्त होना अहिंसा है। सब जीवों के प्रति संयम करना, समभाव रखना अहिंसा है। समानता का भाव सामुदायिक जीवन में विकसित होता है तब अहिंसक क्रान्ति घटित हो जाती है। महावीर ने अहिंसक क्रान्ति के लिए जनता को ये सूत्र दिए
१. किसी का वध मत करो। २. किसी के साथ वैर भत करो। जो दूसरों के साथ वैर करता है,
वह अपने वैर की श्रृंखला को और प्रलम्ब कर देता है। ३. सबके साथ मैत्री करो।
अहिंसा के इन सूत्रों का मूल्य वैयक्तिक था। महावीर ने
सामाजिक सन्दर्भ में भी अहिंसा के सूत्र प्रस्तुत किये। ४. उस समय दास-प्रथा चालू थी। सम्पन्न मनुष्य विपन्न मनुष्य को
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