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१५२ / जैन दर्शन के मूल सूत्र
समावेश संकल्पजा हिंसा की कोटि में होता है। स्वस्थ समाज के लिए इन सबका वर्जन अत्यन्त आवश्यक है। भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त अहिंसा अणुव्रत की व्यवस्था बहुत व्यापक है। अहिंसा अणुव्रत स्वस्थ समाज की रचना का एक प्रयोग है।
अहिंसा पर आधारित जीवन शैली का प्रयोग किया गया। इस आधार पर व्रती समाज की संरचना की गई। अव्रती समाज हिंसा और संग्रह इन दोनों से प्रभावित होता है और वह हिंसा से उपजने वाली असीम आकांक्षा या संग्रह से उपजने वाली समस्याओं से घिरा रहता है और नई समस्याएं भी पैदा करता है।
भगवान महावीर ने अहिंसा और असंग्रह की पुष्टि के लिए उपभोग के व्रत की व्यवस्था की। उपभोग की सीमा किये बिना अर्थार्जन में शुद्ध साधन की स्थिति का निर्माण नहीं होता। उसके बिना नैतिकता के प्रश्न का समाधान नहीं होता। भगवान महावीर के व्रती समाज में पांच लाख से अधिक स्त्री-पुरुष सम्मिलित हुए। उनका आध्यात्मिक जीवन विकसित हुआ। उसके साथ-साथ सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन आया।
ढाई हजार वर्ष के बाद आज भी व्रती समाज की कल्पना बहुत सार्थक है। इस दिशा में उठने वाला कदम व्यक्ति और समाज दोनों के जीवन को नई दिशा देने वाला होगा।
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