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जैन धर्म की देन
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वह धर्म, जिसके सिद्धान्त जनता के लिए कल्याणकारी होते हैं, उसे संख्या से नहीं आंका जा सकता। गणित की भाषा में उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती किन्तु जो शक्तिशाली धर्म होता है, वह जन-मानस में अपना प्रभाव छोड़ देता है। जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या कितनी है, इस बात से जैन धर्म को आंका नहीं जा सकता। किन्तु जैन धर्म ने जन-मानस को कितना प्रभावित किया और वर्तमान का जन-मानस और वर्तमान का युग उससे कितना प्रभावित है, इस पर थोड़ा ध्यान दें।
आज के युग में समन्वय का स्वर बहुत प्रबल है। एक साधारण आदमी भी समन्वय की बात करना चाहता है। यह समन्वय का स्वर कहां से मुखर हुआ? जैन दर्शन का एक सिद्धान्त है नयवाद। वह जैन धर्म की एक विशेष देन है। उसका बहुत बड़ा फलित है कि प्रत्येक विचार सत्य है। जितने विचार हैं, वे सब विचार सत्य हैं। यानी कोई भी विचार मिथ्या नहीं है। यह एक बहुत बड़ा सिद्धान्त है। इसके आधार पर प्रत्येक दर्शन को मान्यता मिल जाती है। जैन दर्शन ने सब दर्शनों को मान्यता दे दी। कितना उदार दृष्टिकोण है ! जितने दर्शन, जितने सम्प्रदाय, जितने विचार हैं, वे सब सत्य हैं, असत्य नहीं हैं। असत्य तब बनते हैं जब वे निरपेक्ष बन जाते हैं। सापेक्ष हैं तो सब सत्य हैं। यह सब विचारों की सत्यता की स्वीकृति एक बहुत बड़ा सिद्धान्त है और यह जैन दर्शन की अलग पहचान बनाने वाला सिद्धान्त है। किसी भी दर्शन ने इतनी उदारता के साथ इस बात को स्वीकार नहीं किया कि दूसरा दर्शन भी सत्य है।
• सार्वभौम धर्म की स्वीकृति-यह जैन धर्म की दूसरी विशेषता है। उसमें असाम्प्रदायिक धर्म को स्वीकार किया गया, सार्वभौम धर्म को
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