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________________ धर्म और नैतिकता / १५१ है। एक बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, यह समुद्र का कानून है। जहां भय होता है वहां समाज नहीं बनता। समाज बने और चले, समाज व्यवस्था स्थाई रहे, उसके लिए दो अनिवार्य शर्ते हैं.-अभय और अनाक्रमण। इन दोनों का समुच्चय है अहिंसा। जो राष्ट्र परस्पर युद्ध करते हैं वे ही राष्ट्र युद्ध के बाद परस्पर अनाक्रमण संधियां करते हैं। युद्ध के बिना भी अनाक्रमण की संधियां होती हैं। एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेगा, किसी का अपहरण नहीं करेगा, ये संधियां होती हैं, इसलिए कि समाज शान्ति में रह सके। शांति का आधार है समाज। शांति का आधार है अनाक्रमण और अभय की भावना का विकास। गृहस्थ की आचार-संहिता का पहला सूत्र महावीर ने दिया अहिंसा। यह समाज-व्यवस्था का सबसे मजबूत आधार माना जाता है। एक सामाजिक प्राणी के लिए अहिंसा के क्रमिक विकास की संहिता निर्धारित की जा सकती है। क्रमिक विकास की दृष्टि से हिंसा के तीन विभाग किये गए__ आरंभजा हिंसा-खेती तथा जीविका के साधन मूल व्यापार और उद्योग में होने वाली हिंसा। . . विरोधजा हिंसा- आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए होने वाली हिंसा। संकल्पजा हिंसा-संकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा। एक सामाजिक मनुष्य के लिए आरंभजा हिंसा से बचना सम्भव नहीं है। विरोधजा हिंसा से बचना असम्भव नहीं पर लगभग असंभव जैसा है। अहिंसा का अभ्यास करने वाला सबसे पहले संकल्पजा हिंसा का परित्याग करे। अहिंसा अध्यात्म का एक प्रयोग है। वह आध्यात्मिक चेतना के जागरण के लिए जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही समाज के लिए उपयोगी है। हिंसा का अर्थ किसी प्राणी को मारना ही नहीं है, लड़ाई, झगड़ा और कलह करना भी हिंसा है। दोषारोपण, चुगली, निंदा- ये सब हिंसा के प्रकार हैं । आर्थिक और व्यावसायिक अप्रामाणिकता भी हिंसा है। इनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003070
Book TitleJain Darshan ke Mul Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2001
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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