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धर्म और नैतिकता
जैन धर्म पर विचार करते समय उसके चार प्रमुख विषयों पर विचार कर लेना जरूरी है- दर्शन, आचार, गणित और कथा। इस चार अंग वाले वर्गीकरण के आधार पर आगम साहित्य चार भागों में विभक्त है
द्रव्यानुयोग-तत्त्व मीमांसा : दर्शनशास्त्र चरणकरणानुयोग-आचार-शास्त्र गणितानुयोग-गणित-शास्त्र धर्मकथानुयोग-कथा, दृष्टांत, रूपक आदि।
समाज को प्रभावित करने वाला विषय है आचारशास्त्र। दर्शनशास्त्र उसकी पृष्ठभूमि में रहता है। समाज से सीधा सम्बन्ध आचार और व्यवहार का होता है। भगवान महावीर ने सामाजिक मनुष्य के लिए अणुव्रत की आचार-संहिता प्रतिपादित की। उसमें अहिंसा का पहला स्थान है। उनका सूत्र है-अहिंसा धर्म है, धर्म के लिए हिंसा नहीं की जा सकती। धर्म की रक्षा अहिंसा से होती है, धर्म की रक्षा के लिए हिंसा नहीं की जा सकती।
महावीर ने घोषणा की-मनुष्य जाति एक है। जातीय भेदभाव, घृणा और छुआछुत-ये हिंसा के तत्त्व हैं। अहिंसा धर्म में इनके लिए कोई अवकाश नहीं है।
महावीर ने धर्म के तीन लक्षण बतलाए-अहिंसा, संयम और तप। ये तीनों आत्मिक और वैयक्तिक हैं । इनसे फलित होने वाला चरित्र नैतिक होता है। राग-द्वेषमुक्त चेतना अहिंसा है । यह धर्म का आध्यात्मिक स्वरूप है। जीव की हिंसा नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना,
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