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१४८ / जैन दर्शन के मूल सूत्र
राष्ट्रीय एकता का आधार-सूत्र
हमारा बल इस बात पर है कि समाज अहिंसक बने, अपरिग्रही बने। यह सम्भव नहीं है। कषाय की तीव्रता और अहिंसक समाज की रचना-ये दोनों विरोधी बातें हैं। कषाय की तीव्रता और अनेकान्त का प्रयोग-ये दोनों एक साथ सम्भव नहीं है। अनेकान्त, सापेक्षता, समन्वय, अहिंसा, अपरिग्रह-इन सबकी आधारशिला है कषाय पर नियन्त्रण।
भावात्मक एकता या राष्ट्रीय एकता का आधार-सूत्र भी यही है। जैन वाङ्मय का प्रसिद्ध सूत्र है-कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव-कषाय की मुक्ति ही मुक्ति है। फिर चाहे समस्या की मुक्ति हो या देह-मुक्ति। हमारी शिक्षा के साथ कषाय नियन्त्रण के प्रशिक्षण की बात जुड़े बिना हम भावात्मक एकता की बात सोच नहीं सकते। जैन दर्शन ने इस बात पर बल दिया कि जड़ को सींचो, केवल फूल और पत्तों को मत सींचो। हम पत्तों और फूलों तक अटक जाते हैं, जड़ तक पहुंचने की बात बहुत कम करते हैं। मूलस्पर्शी नीति के द्वारा ही राष्ट्रीय एकता का संवर्धन किया जा सकता है।
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