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जीव- - शरीर सम्बन्धवाद / १०९
है किन्तु पुद्गल में राग नहीं है। इसलिए सिणेह का अर्थ स्नेह वाला नहीं होना चाहिए ।
घडत्ताए - घडत्ताए का एक अर्थ है- आधार । इसका प्रयोग रचना अर्थ में भी होता है । घट समूह का वाचक शब्द भी है - जैसे मेघ घटा/ बादलों का समूह ।
जीव और पुद्गल शरीर के सम्बन्ध में गौतम द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समाहित करने के लिए भगवान महावीर ने एक सुन्दर उपमा को भी प्रस्तुत किया है। एक तालाब पानी से पूरा भरा हुआ है । उसमें जल समा नहीं रहा है । जल का दबाव और भराव निरन्तर बढ़ रहा है । उसमें से पानी निरन्तर आ रहा है, निकल रहा है। पानी के उस अथाह प्रवाह में एक व्यक्ति ने अपनी नौका को खड़ा किया। वह नौका सैकड़ों छेदों वाली है ।
आस्रव और छिद्र पर्यायवाची शब्द हैं । किन्तु छिद्र का अर्थ है - बड़ा छेद और आस्रव का अर्थ छोटा छिद्र भी हो सकता है ।
छेदों में पानी प्रविष्ट होता है। धीरे-धीरे पूरी नौका पानी से भर जाती है जलमय बन जाती है। इस दृष्टान्त को स्पष्ट करते हुए भगवान ने कहा- जीव में छिद्र है आस्रव और पुद्गल की प्रकृति है छिद्र में भर जाना, प्रविष्ट हो जाना । जीव में स्नेह है आस्रव और पुद्गल में आकर्षित होने की क्षमता । दोनों स्नेह से बंधे हुए हैं 1
डेकार्टे, स्पिनोजा लाइबनिटस आदि पाश्चात्य दार्शनिकों ने एक प्रश्न खड़ा किया --- शरीर और मन का सम्बन्ध क्या है? मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी यह प्रश्न चर्चित हुआ है। प्रस्तुत प्रसंग में मन का तात्पर्य जीव से है । जीव शरीर को प्रभावित कर रहा है और शरीर जीव को प्रभावित कर रहा है। हमारे आचरण और व्यवहार की व्याख्या का आधार भी यही है । इसीलिए इनके पारस्परिक सम्बन्ध को कारा नहीं जा सकता ।
यदि हम जीव और शरीर को सम्बन्धातीत मान लें तो सिद्धों की व्याख्या हो सकती है । किन्तु शरीरधारी प्राणी को व्याख्यात नहीं किया
जा सकता ।
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