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धर्म का रेखाचित्र ७६
पारलौकिक संदर्भ में सामाधान ढूंढ़ना एकांगी कोण है।
कर्मवाद का सिद्धांत बहुत वैज्ञानिक है। क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, उसे अमान्य नहीं किया जा सकता। कर्मवाद को पुरुषार्थ की प्रेरणा का स्रोत होना चाहिए। पर वह वैसा नहीं है। वर्तमान भारत की दुःखद स्थिति का एक हेतु कर्मवादी दृष्टि का विपर्यय है। भाग्यवाद की आंधी से पुरुषार्थ की ज्योति बुझ गई है। कर्मवाद का एकांगी समर्थन कर धार्मिक वातावरण भी निस्तेज हो गया है। हम धर्मक्रान्ति चाहते हैं और इसलिए चाहते हैं कि धर्म का शाश्वत रूप उदय में आए। यह कार्य पार्मिक का दृष्टिकोण बदले बिना नहीं हो सकता। इस वैज्ञानिक युग के धार्मिक से अपेक्षा है कि वह
धर्म को शास्त्र के संदर्भ में कम, प्रयोग के संदर्भ में अधिक समझने का प्रयत्न करे। . धर्म के द्वारा पारलौकिक सुख की कामना को त्यागकर वर्तमान तीवन को स्वच्छ बनाने का यत्न करे। __ भाग्यवाद को स्वीकार करते हुए भी उसे पुरुषार्थ का आवरण न नाए।
धर्म-देवता को श्रद्धा की वेदी से उठाकर परीक्षा और प्रयोग की वेदी र प्रतिष्ठित करे।
८. धर्म का रेखाचित्र
ऐसी शक्ति की अपेक्षा है, जो स्वयं प्रकाशित हो और दूसरों को भी काशित कर सके।
ऐसी शक्ति की अपेक्षा है, जो स्वयं असंग्रही रहकर संग्रह का नेयमन करे। __ ऐसी शक्ति अपेक्षित है, जो स्वयं अहिंसक रहकर हिंसा पर नेयन्त्रण स्थापित करे।
जिस शक्ति की अपेक्षा है, वह अध्यात्म है।
धर्म हमारे लिए तब तक आवश्यक है जब धर्म और हम दो हैं। इम अपने अस्तित्व के साथ एकरस नहीं हैं, तब तक धर्म आवश्यक है,
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