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धर्म की कसौटी ७७
इसलिए आकर्षण का केन्द्र नहीं बन रहा है, क्योंकि वह तर्क के निकष से कसा हुआ नहीं है । एक वैज्ञानिक के लिए धर्म इसीलिए आकर्षण का केन्द्र नहीं बन रहा है, क्योंकि वह प्रयोगसिद्ध नहीं है । धर्म उन लोगों के हाथों की गेंद बन रहा है, जो अबौद्धिक और अवैज्ञानिक हैं 1 इसलिए आज की नयी पीढ़ी धर्म को पुराना मानती है । किसी बूढ़े से पूछो कि पुराने का क्या मूल्य होता है? उस कपड़े से पूछो जो जीर्ण-शीर्ण हो जाने पर फेंक दिया जाता है । उस प्रासाद से पूछो जो खण्डहर होने पर धराशायी होने को है । सचमुच आज धर्म पुराना हो गया है। आपको आश्चर्य होगा, धर्म शाश्वत है, फिर पुरातन कैसे ? जो अशाश्वत होता है, वह नया और पुराना होता है । शाश्वत नया और पुराना नहीं होता । क्या धर्म शाश्वत है? जो शाश्वत है, वह धर्म का आन्तरिक रूप-अध्यात्म है । धर्म का बाह्य स्वरूप शाश्वत नहीं है। उसके परिपार्श्व में पल्लवित विधि-विधान और नियम शाश्वत नहीं हैं। अशाश्वत शाश्वत से प्राण-संचार नहीं पा रहा है, इसीलिए वह पुराना हो रहा है ।
अध्यात्म से अनुप्राणित धर्म में त्राणशक्ति का विकास हुआ था । आज धार्मिक में भी यह विश्वास नहीं है कि धर्म उसे त्राण दे सकता है । वह धर्म के लिए त्राण की खोज में है। एक व्यक्ति आचार्य तुलसी के पास आया। उसने कहा, 'मैं गीता को भूमिगृह में गाड़ देना चाहता हूं।' आचार्यश्री ने पूछा - 'किसलिए ? उसने कहा- 'अणुबम का युग है I अणुबमों का प्रयोग होने पर भी वह सुरक्षित रहेगी ।' आचार्यश्री ने कहा- 'जब मनुष्य ही नहीं रहेगा तो उसे पढ़ेगा कौन? सचमुच यह गम्भीर प्रश्न है। कुछ धार्मिक इस चिंता में हैं कि साम्यवाद आ गया तो धर्म का क्या होगा? कुछ इस चिंता से ग्रस्त हैं कि विज्ञान ऐसे रहस्य उद्घाटित कर रहा है, जिनसे धर्म की आस्था विलीन हो जाएगी। इन चिन्ता- भूमिकाओं में धर्म असहाय - सा प्रतीत हो रहा है । वह वास्तव में ही इतना दुर्बल है तो हमें उसकी आवश्यकता नहीं है। जो अपना त्राण अपने आप में नहीं ढूंढ सकता, उसे विश्व के रंगमंच पर रहने का अधिकार नहीं है ।
धर्म इतना अत्राण क्यों बना? वह इतना पुराना क्यों बना? इस प्रश्न के उत्तर में तीन तथ्य सामने आते हैं :
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