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________________ ५८ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति उसके सादृश्य-असादृश्य तथा सम्बन्ध-असम्बन्ध का ज्ञान किए बिना परमाण का पूरा ज्ञान हो नहीं सकता। इसीलिए एक परमाणु के विश्लेषण में सृष्टि के असंख्य नियम जान लिये जाते हैं। आज हमारा ध्यान विस्तार पर अटक गया है। संक्षेप को जानने की रुचि हममें नहीं है। उपनिषदों में कहा गया है-जो नानात्व को देखता है, वह मौत से भी भयंकर स्थिति की ओर जा रहा है। एक को यानी व्यक्ति को जाने बिना नानात्व को यानी समाज को जानने की बात सचमुच भयंकर होती है। व्यक्ति की समस्याओं के तीन वर्ग हैं-१. शारीरिक, २. सामाजिक, ३. मानसिक और आत्मिक। शारीरिक समस्याओं-जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभ्यता के आदिकाल में ही अर्थसत्ता का अस्तित्व उदय में आया। अर्थसत्ता के आगमन के साथ एक दूसरी समस्या खड़ी हो गई। लूट-खसोट, छीनाझपटी शुरू हुई। सबल निर्बल को आतंकित करने लगे। इस सामाजिक समस्या को सुलझाने के लिए राज्यसत्ता का प्रादुर्भाव हुआ। ____ अर्थसत्ता से उत्पन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए राज्यसत्ता पनपी किन्तु वह भी पवित्र न रह सकी। राज्यसत्ता की उच्छृखलता पर अंकुश लगाने के लिए नैतिकसत्ता या धर्मसत्ता की अपेक्षा हुई। धर्मसत्ता के आविर्भाव का एक कारण व्यक्ति के अन्तर् की आकुलता भी है। इन सत्ताओं का प्रादुर्भाव होने पर भी व्यक्ति की समस्याएं सुलझीं नहीं। व्यक्ति आज भी गरीब है, अभाव से ग्रस्त है। वह सामाजिक सहयोग से आज भी वंचित है। उसकी चेतना आज भी कुण्ठित है। इसका हेतु क्या है? मेरी समझ में हेतु अस्पष्ट नहीं है। व्यक्ति के समाधान के लिए जिन सत्ताओं के गले में वरमाला डाली थी, वे स्वयं समस्या बन गई हैं। मुझे एक पौराणिक कहानी याद आ रही है। एक चूहे ने तपस्या कर शंकर से वरदान प्राप्त किया और वह बिल्ली बन गया। वह बिल्ली के डर से बिल्ली बना पर कुत्ते का डर अब भी बना हुआ था। वह वर प्राप्त करते-करते बिल्ली से कुत्ता, कुत्ते से चीता, चीते से शेर और शेर से मनुष्य बन गया। एक दिन शंकर ने पूछा-'अब तो कोई डर नहीं सता रहा है? 'मौत का डर सता रहा है, उसने उत्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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