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४६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
किसका निरसन? क्या प्रवचनकार शब्द का सहारा लिये बिना शास्त्र का निरसन कर सकते थे? वस्तुतः वे शास्त्र का निरसन नहीं कर रहे थे, किन्तु प्राचीन शास्त्र पर अपने शास्त्र का समारोपण कर रहे थे। यह समारोपण एकांगी दृष्टि से होता है। काल-परिवर्तन के साथ ध्वनि के अर्थ-परिवर्तन को मान्यता दी जाए तो शास्त्र में निरसन जैसा क्या बचेगा? दिल्ली एक शब्द है। वह दिल्ली नामक भूखण्ड का वाचक है। दिल्ली थी, दिल्ली है और दिल्ली रहेगी-इन तीनों शब्दों का अर्थ एक नहीं है। अंग्रेजों की दिल्ली से कांग्रेसी-शासन की दिल्ली भिन्न है और किसी भावी शासन की दिल्ली कांग्रेसी-शासन की दिल्ली से भिन्न होगी। सक्ष्म का स्पर्श करें तो कल की दिल्ली से आज की दिल्ली भिन्न है और आज की दिल्ली से कल की दिल्ली भिन्न होगी। ___ यह काल-बोध से प्रभावित होने वाला शब्द का अर्थबोध महावीर का शब्द नय है।
आज हम आचार्य तुलसी के साथ मण्डोर के उद्यान में परिव्रजन कर रहे थे। सामने पहाड़ की चढ़ाई थी, सीढ़ियां बनी हुई थीं। आचार्यश्री ने सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते कहा- 'यह तो उद्यान है।'
मेरी स्मृति तत्काल उस अर्थ-संज्ञा से अभिभूत हो गई कि उद्यान का वाच्य है-ऊर्ध्व-भूमि पर बना हुआ उपवन। वाच्य और वाचक का परस्पर गहरा अनुबन्ध है। ऐसा कोई भी वाच्य नहीं है, जिसका दो वाचकों द्वारा प्रतिवचन किया जा सके। निरुक्त की भिन्नता के साथ-साथ अर्थ की भिन्नता आ जाती है। यह महावीर का समभिरूढ़ नय है। ____ एक राज्याधिकारी दो दीप जलाते थे। एक राजकीय तेल से और एक अपने तेल से ! जब वे सरकारी काम करते तब राजकीय तेल से दीप जलाते थे और जब घरेलू काम करते तब अपने तेल से दीप जलाते थे। इसी प्रकार की कई घटनाएं और प्राप्त होती हैं। एक राज्याधिकारी जब सरकारी काम के लिए जाते हैं, तब राजकीय मोटर कार का उपयोग करते हैं और जब घरेलू काम के लिए जाते हैं, तब उसका उपयोग नहीं करते, बस में बैठकर चले जाते हैं, क्योंकि उस समय वे राज्याधिकारी नहीं होते। वे राज्याधिकारी उसी क्षण होते हैं, जिस क्षण राज्याधिकार
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