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अहिंसा का अर्थ ३७
को पनपते देखता हूं। ___मैं अपूर्ण हूं और पूर्ण होना चाहता हूं यही मेरी अहिंसा का आदि-बिन्दु है। अपूर्ण पूर्ण तभी होगा, जब जो है, वह नहीं रहेगा और जो नहीं है, वह होगा। यह है मेरा अपना आलोचन अपनी ही लेखनी द्वारा प्रसूत!
१६. अहिंसा का अर्थ
मैं अपने जीवन का सिंहावलोकन करता हूं तब कल्पनालोक से उतर धरती पर आ जाता हूं और कल्पना के पंखों को छोड़ अपने पैरों से चलने लग जाता हूं। मैं देखता हूं, एक दिन मैंने संकल्प किया था, मैं अहिंसा का पालन करूंगा। उस समय मेरे लिए अहिंसा का अर्थ था जीवों को न मारना। जहां जीव मरे, वहां भी अहिंसा हो सकती है, यह मेरे लिए अतर्कणीय था। ___जीव-दया की अर्थ-गरिमा भी कम नहीं है। आत्मतुला के भाव की चरम परिणति में अतुल आनन्दानुभूति होती है। समय-समय पर मुझे इसकी अनुभूति हुई है। मैं जैसे-जैसे बड़ा हुआ, सहधर्मियों की मनोभूमिका पर विहरने लगा, तब मुझे प्रतीत हुआ मेरी अहिंसा की समझ अधूरी है। अहिंसा की परिपूर्ण वेदिका के निर्माण के लिए मैं तड़प उठा। मैंने समझा, अहिंसा का अर्थ है, परिस्थिति के मर्मभेदी परशु से मर्माहत न होना। इस कुशल जगत् में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है, जो परिस्थिति के मृद् पुष्प से प्रमत्त और कठोर वज्र से आहत न हो। मुझे लगा जो व्यक्ति अपनी जीवन-धारा को परिस्थिति के प्रभाव-क्षेत्र की
ओर प्रवाहित कर देता है, वह अहिंसा की अनुपालना नहीं कर सकता। परिस्थिति की मृदुता से आने वाली मूर्छा के साथ-साथ चेतना मूर्छित हो जाती है और उसकी कठोरता से उपजने वाली कुण्ठा के साथ-साथ वह कुण्ठित हो जाती है।
अहिंसा चेतना की स्वतन्त्र दशा है। जो सर्दी से अभिभूत हो जाए, वह स्वतन्त्र नहीं हो सकती। जो गर्मी से अभिभूत हो जाए, वह भी स्वतन्त्र नहीं हो सकती। स्वतन्त्र वह हो सकती हैं जो किसी से अभिभूत
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