________________
क्या मैं स्वतंत्र हूं? ३५
में डूब गया। जैसे-जैसे लेप उतरे, वह ऊपर आ गया। धुआं इसीलिए ऊपर गया कि वह हल्का है। पत्थर इसीलिए नीचे आया कि वह भारी है। ऊपर जाना लाघव की अधीनता है और नीचे जाना भार की अधीनता। लेप ने निर्लेपता की अनुभूति दी है और अधःपात ने ऊर्ध्वगमन की। __यदि अंधकार नहीं होता तो प्रकाश का वह मूल्य नहीं होता, जो आज है। स्वास्थ्य, सुख और शान्ति का मूल्य रोग, दुःख और अशान्ति के संदर्शन में ही आंका जा सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि निरपेक्ष मूल्यांकन से अतीत है और इसका अर्थ यह हुआ कि वह कालातीत है। मैं व्यक्त हूं, इसलिए कालाक्रांत हूं। मैं कालाक्रांत हूं, इसलिए भूत, भविष्य और वर्तमान की मर्यादा से मर्यादित हूं। क्या कोई मर्यादित व्यक्ति यह जिज्ञासा कर सकता है कि मैं स्वतंत्र हूं? ।
कुम्हार का चाक कुछ क्षण पहले उसकी उंगली के अधीन होकर चल रहा था। अब वह उस वेग के अधीन चल रहा है जो उंगली द्वारा प्रदत्त है। मैं कभी उंगली के अधीन चल रहा हूं और कभी वेग के अधीन। दुनिया की सारी गतिशीलता अधीनता द्वारा नियंत्रित है। एक बार एक राजा और मंत्री में विवाद हो गया। मंत्री ने कहा-सारे लोग पत्नी की अधीनता स्वीकार कर चल रहे हैं। राजा ने इसका प्रतिवाद किया। आखिर परीक्षा की घड़ी आयी। दो खेमे लगे। पत्नी की अधीनता को मान्यता देने वाला खेमा भर गया। दूसरे खेमें में सिर्फ एक व्यक्ति गया। राजा के पूछने पर उसने बताया कि मेरी पत्नी ने कहा-भीड़-भाड़ में मत फंसना, इसलिए मैं अकेला खड़ा हूं। सारे नगर में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जो पत्नी द्वारा चालित न हो। सारी दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो अपेक्षाओं द्वारा संचालित न हो। - मैं एक बार जंगली माषों के पौधों से घिरा बैठा था। दोपहरी की वेला थी। सूरज अपनी प्रखर रश्मियों से उन पौधों पर आग बरसा रहा था। उन पर लगी फलियों में तड़-तड़ की ध्वनि हो रही थी। मैंने सस्मय दृष्टि से देखा-फलियां टूट रही हैं, दाने आकाश में उछल रहे हैं। उछलने में स्वतंत्रता के आनन्द की अनुभूति थी। अनुभूति ने मुझे यह संबोध दिया कि दाने को फली की अधीनता मान्य हो सकती है, यदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org