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क्या मैं स्वतंत्र हूं? ३३
आलोक सतह पर आ जाए और मैं शठता का व्यवहार इसलिए नहीं करता हूं, जिससे आलोक तिमिर के आवरण से मुक्त हो जाए।
१४. क्या मैं स्वतंत्र हूं?
मुझे इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि मैं स्वतंत्र नहीं हूं। मैं क्या, जिसके पन्दिर में प्राण का प्रदीप जल रहा है, वह कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र नहीं है। प्राणवायु प्रवाहित हो रहा है, मैं जी रहा हूं। अनाज उपज रहा है, मैं खा रहा हूं। जल बरस रहा है, मैं पी रहा हूं। मेरी पुष्टि अन्न और जल के अधीन है। मेरी जीवन-यात्रा प्राणवायु के अधीन है। जीवन का अर्थ है, पराधीनताओं की स्वीकृति। __मैं देख रहा हूं, सामने दीवट है, दीप जल रहा है। एक मृन्मय पात्र, तेल, बाती, हवा और अग्नि-दीप इन सबकी अधीनता स्वीकार कर प्रकाश दे रहा है।
मैं देख रहा हूं, बीज अंकुरित हो रहा है। उर्वरभूमि, जल, धूप, प्रकाश और हवा-बीज इन सबकी अधीनता स्वीकार कर रहा है। क्या दीप प्रकाश देने में स्वतंत्र है? क्या बीज अंकुरित होने में स्वतंत्र है? काल, स्वभाव, नियति, भाग्य और पुरुषार्थ की श्रृंखला से कोई भी मुक्त नहीं है। फलतः कोई भी स्वतंत्र नहीं है।
एक पिंजड़ा टंगा हुआ है। उसके मध्य में एक सुग्गा बैठा है। पिंजड़े का द्वार खुला, सुग्गा उड़ गया। मैंने अपने आपसे पूछा, वह भोला पक्षी घर को छोड़ जंगल में क्यों चला गया? पिंजड़े में छितरे हुए मेवों को छोड़ सूखे पेड़ों की शरण में क्यों चला गया?
कोई अज्ञात स्वर गूंज उठा-पिंजड़ा बन्धन है। अनन्त शून्य की गोद में स्वच्छन्द विहरने वाला सुग्गा बंधन को कैसे पसन्द कर सकता है? मैंने इसका अर्थ यह समझा कि अनन्त शून्य से घिरा हुआ है, इसलिए घेरे की शून्यता मान्य नहीं है। ___गति-पर्याय से घिरा हुआ जल क्या कभी सेतु को मान्यता देता है? बांध का अर्थ है, जल की विवशता। वह गति के अधीन है, इसलिए उसे स्थिति मान्य नहीं है। मैं यही कहना चाहता हूं कि बंधन का अर्थ
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