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मनोविकास की भूमिकाएं २७
गुरु ने उत्तर दिया-'बहत अच्छा है।' विवेकानन्द-अच्छा कैसे है, जबकि मन चंचल हो रहा है?
परमहंस-तुम्हारी वासना मिट रही है। जो जमा हुआ पड़ा था वह निकल रहा है। ध्यान में चंचलता आए उसे छोड़ दो, दबाने का यत्न मत करो। जिसका निरोध किया जाता है वह अधिक चंचल हो जाता है। जिसका निरोध किया जाता वह स्वतः शान्त हो जाता है।
'निवारितं बहु चंचलं भवति,
अनिवारितं स्वयमेव शांतिमेति।' रोकने का प्रयत्न मत करो। तुम देखते रहो वह कितना तेज दौड़ रहा है? तीव्र गति में दौड़नेवाली मोटर को ब्रेक लगाने से क्या होगा? १०५ डिग्री बुखार को एक साथ उतारने में खतरा ही होता है। मन की गति को मत रोको। मन को खुला छोड़ दो। बच्चे को बांधने से न आप काम कर सकेंगे और न वह टिक सकेगा। बच्चे को खुला छोड़ने से आप भी काम कर सकेंगे, जरा-सा ध्यान रखें। मन को न रोकने से आप देखेंगे, कभी वह चंचल है तो कभी शान्त। यातायात की भूमिका में मन कभी स्थिर रहता है और कभी चंचल।
श्लिष्ट
श्लिष्ट यानी चिपकना। मन को ध्येय के साथ चिपकाना यानी उसके साथ सम्बन्ध स्थापित करना। अभ्यास करते-करते मन इस भूमिका पर आ जाता है।
सुलीन
सुलीन का अर्थ है-ध्येय में लीन हो जाना। जैसे दूध में चीनी घुल जाती है। घुलने से चीनी का अस्तित्व समाप्त नहीं होता अपितु उसमें विलीन हो जाता है। दूध में मिठास चीनी का अस्तित्व बताता है। इस भूमिका में मन ध्येय में लीन हो जाता है, मन को ध्येय से भिन्न नहीं देख सकते। योग की भाषा में आचार्यों ने इसे समरसी भाव और समापत्ति कहा है। जहां ध्येय और ध्याता की एकात्मकता सध जाती है
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