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२६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
मन को जानने का प्रयत्न करता है। तब अनुभव करता है कि मन चंचल है। दिल्ली में जब साधना-शिविर चल रहा था उसमें एक भाई ने प्रश्न किया था-'ध्यान नहीं करता हूं तब मन स्थिर रहता है। ध्यान में मन अधिक चंचल हो जाता है, यह क्यों?
- मैंने कहा-'ध्यान नहीं करते थे उस समय मन स्थिर था, यह भ्रांति है, अंकन में भूल है। ध्यान करने की स्थिति में आए तब अनुभव हुआ मन चंचल होता है। गांव के बाहर अकरडी है। हजारों उस पर चलते हैं, पर दुर्गन्ध की अनुभूति नहीं होती। उसकी सफाई के लिए कुरेदने पर बदबू भभक उठती है। क्या पहले दुर्गन्ध आती है? नहीं, जमा हुआ ढेर था, दुर्गन्ध दबी हुई थी। मन की भी यही प्रक्रिया है। मन में विचारों के, मान्यताओं के और धारणाओं के संस्कार जमे पड़े हैं। अनुभव नहीं होता कि मन चंचल है। जब मन को साधने का प्रयत्न करते हैं तब उसकी चंचलता समझने का अवसर मिलता है।'
बहुत लोगों का कहना है कि माला जपते समय मन की चंचलता बढ़ती है, तब फिर माला जपने से क्या लाभ है? सामायिक में घरेल काम अधिक याद आते हैं, इसका कारण क्या है? चमार से पूछा गया-'क्या तुम्हें चमड़े की दुर्गन्ध आती है? उत्तर मिला-'नहीं।' बात भी सत्य है। यदि चमार को दुर्गन्ध की अनुभूति होने लग जाए तो उसका जीना दूभर बन जाए। दूसरे व्यक्ति को दुर्गन्ध आ सकती है, पर चमार को नहीं। चंचलता के वातावरण में रहने से चंचलता की अनुभूति नहीं होती। दूसरी भूमिका में जाने से चंचलता की अनुभूति होती है।
यातायात
जो चंचलता आती है वह बुराई नहीं है, विकास की ओर प्रयाण का पहला शुभ शकुन है। चंचलता का विस्फोट या उभार आए तो भी घबराएं नहीं, अन्तिम दिनों में स्थिरता की अनुभूति होने लगेगी। दीया बुझता है, उस समय अधिक टिमटिमाता है। चींटी के पंख आने का अर्थ है मृत्यु की निकटता।
विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस से कहा-'गुरुदेव! वासना का इतना उभार आ रहा है कि मैं अपने को संभालने में अक्षम हूं।'
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