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________________ मनोविकास की भूमिकाएं २५ कवि भी दो प्रकार के होते हैं-प्रातिभ और अभ्यास-निष्पन्न। काव्य के क्षेत्र में हम देखते हैं आठ-दस वर्ष की अवस्था में भी कोई महान् कवि बन जाता है। दूसरे अभ्यास के पथ पर चलते-चलते महान् बनते हैं। हर क्षेत्र की यही स्थिति है। कृष्ण से पूछा गया-'मन का निग्रह कैसे किया जाए? उत्तर मिला 'असंशयं महाबाहो, मनो दुर्निग्रहं चलम् । अभ्यासेन च कौन्तेय! वैराग्येण च गृह्यते ॥' मन का निग्रह अभ्यास और वैराग्य से होता है। अभ्यास कृत होता है, अर्जित नहीं। वैराग्य स्वाभाविक होता है, कृत नहीं। योग के आचार्य पतंजलि ने भी यही कहा है-'अभ्यास और वैराग्य से मन का निरोध होता है।' अभ्यास करते-करते निरोध की अन्तिम सीढ़ी तक पहुंचा जा सकता है। अभ्यास से लब्ध नहीं होता तो पुरुषार्थ निष्फल हो जाता। अभ्यास से जो कल नहीं थे, आज बन सकते हैं। मन का विकास कैसे हो? इस प्रश्न पर आचार्य हेमचन्द्र ने भी प्रकाश डाला है। उन्होंने इसके लिए चार भूमिकाओं का उल्लेख किया १. विक्षिप्त, २. यातायात, ३. श्लिष्ट, ४. सुलीन। उन्होंने योगशास्त्र में अंतिम अध्याय को छोड़कर पूर्व के सभी अध्यायों में परम्परागत (सैद्धांतिक) ध्यान के विषय का सुन्दर प्रतिपादन किया है। अंतिम अध्याय में वे अपनी अनुभूतियां कहते हैं। अनुभूतियों में मार्मिकता है, आत्मा का स्पर्श है। कहीं-कहीं पर उनमें इतनी बेधकता आयी है, जितनी अन्यत्र कम है। विक्षिप्त यह पहली भूमिका है। इसमें साधक ध्यान करना प्रारम्भ करता है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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