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२४ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
वैसे ही मन की चंचलता कहीं हौआ तो नहीं है? मन क्या है? मन हमारी चेतना का ही एक द्वार है। चेतना अनन्त है। उसका एक द्वार मन है। उसे चंचल मानना हमारी भूल है। उसमें चंचलता का आरोपण किया गया है। युद्ध में लड़ने वाले सैनिक होते हैं। जीत होने पर विजय का श्रेय सेनापति को मिलता है और पराजय होने पर अपयश भी उसी का होता है। आरोपण की प्रक्रिया में एक का श्रेय-अश्रेय दूसरे को मिलता है। भलाई और बुराई दोनों का आरोपण किया जाता है।
मन चंचल नहीं है। चंचल है श्वास और चंचल है शरीर। जब तक शरीर की चंचलता को छोड़ने का अभ्यास नहीं होगा और जब तक श्वास के विषय में हमारा ज्ञान गम्भीर नहीं होगा, तब तक हम इसी भाषा में सोचेंगे कि मन चंचल है। जिस दिन शरीर, वाणी और श्वास की स्थिरता सध जाएगी, उस दिन हमें ज्ञात होगा कि मन चंचल नहीं है।
११. मनोविकास की भूमिकाएं
मन हमारी चेतना का एक बिन्दु है। हमारी प्रवृत्ति या निवृत्ति, हर कार्य में मन का योग रहता है। मन को जानना एक अर्थ में स्वयं को जानना है। मन की गतिविधि से अवगत रहना जागरूकता का लक्षण है। मन से परिचय मिल जाने से व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है।
मन फीता नहीं है जिसे खींचकर बढ़ाया जा सके और उसका विकास किया जा सके। मन की क्षमता, योग्यता और कार्य-सम्पादन की पद्धति में विकास किया जा सकता है, यदि उससे परिचित हो लिया जाए। अज्ञान के कारण हम मन को नहीं जान पाते हैं।
मन इन्द्रिय और आत्म-चेतना के मध्यवर्ती है। इन्द्रियों का सम्पर्क बाहरी जगत् से है और चेतना का केन्द्र अन्तर्जगत् है। मन दोनों (इन्द्रिय और चेतना) के द्वारा प्राप्त का विश्लेषण करने वाला या योग करने वाला है।
मनोविज्ञान मानसिक विकास के दो साधन मानता है-वंशानुक्रम और वातावरण। पहला साधन स्वाभाविक क्षमता या प्राकृतिक देन है। दूसरा अभ्यास से होता है।
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