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२२ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
धरातल से ऊंचा है, इसीलिए जिसे यह दृष्टि प्राप्त होती है, वह ऐन्द्रियिक धरातल से उठकर इस धरातल पर आना चाहता है।
भावी सुख के लिए वर्तमान सुख को छोड़ना, कल गढ़े में गिरने के लिए आज गढ़े से निकलने जैसा है।
इन्द्र ने नमि राजर्षि से कहा, “बहुत आश्चर्य है कि तुम अप्राप्त काम-भोगों की प्राप्ति के लिए प्राप्त काम-भोगों को ठुकरा रहे हो? विद्यमान को ठुकरा कर अविद्यमान का संकल्प कर हत-प्रहत हो रहे हो?' - नमि राजर्षि ने कहा, “इन्द्र! तुम्हारी प्रज्ञा सम्यक् नहीं है। ये काम-भोग शल्य हैं। इनका घाव कभी भरा नहीं जा सकता। जो व्यक्ति काम-भोगों की प्रार्थना करता है, वह कामना के भंवरजाल में फंस जाता है। मैं उस जाल से मुक्त होने के लिए काम-भोगों को त्याग रहा हूं।"
भृगु ने अपने पुत्रों से कहा था, “पुत्रो! वैभव, परिवार, पत्नी और काम-भोग, जिनके लिए तप तपा जाता है, वे सब तुम्हें प्राप्त हैं, फिर तुम किसलिए इन्हें छोड़ना चाहते हो?"
भृगु-पुत्र बोले, "पिताजी! जो इनसे प्राप्त नहीं होता, उसी की प्राप्ति के लिए इन्हें छोड़ना चाहते हैं।"
इन्द्रिय-सुख इतना सहज, इतना स्वाभाविक और इतना प्रिय है कि साधारण आदमी उसे त्यागने का स्वप्न भी नहीं ले सकता। उसे त्यागने की कल्पना वही आदमी कर सकता है, जिसे अपने अस्तित्व की विशुद्ध भूमिका की उपलब्धि का तीव्र अनुराग हुआ है। - जिस दिन मनुष्य को अतीन्द्रिय आनन्द की अनुभूति हुई, उस दिन उसने सुख के स्तर और उनका तारतम्य निश्चित किया। ऐन्द्रियिक सुख का स्तर अतीन्द्रिय सुख के स्तर की तुलना में निम्न है। निम्नता के तीन हेतु हैं
१. वह अनैकान्तिक है। २. वह साबाध है। ३. वह अनात्यन्तिक है।
अतीन्द्रिय सुख ऐकान्तिक, निर्बाध और आत्यन्तिक है, इसलिए वह अधिक विश्वसनीय है। ऐन्द्रियिक सुख का सम्बन्ध भौतिक उपकरणों से
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