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१० मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
साधन नहीं हैं, उन पर विश्वास करें, क्या यह भ्रान्ति नहीं है?
५. सूक्ष्म की समस्या
सूर्य आकाश में चमक रहा है। मैंने देखा, रात को असंख्य नक्षत्र और तारे आकाश में टिमटिमा रहे थे, किन्तु अब एक भी नहीं है। सारे दीप बुझ गए हैं। केवल एक सूर्य चमक रहा है। क्या यह सत्य है? ___एक सरसरी निगाह में यह सत्य है, किन्तु गहराई में यह सत्य नहीं है। सत्य यह है कि नक्षत्र और तारे सूर्य के प्रखर प्रकाश से आवृत हैं, अस्तित्वहीन नहीं हैं।
क्या कोई अस्तित्व कभी विनष्ट होता है? क्या जो है, वह चिर भविष्य में नहीं होगा? क्या जो है, वह चिर-अतीत में नहीं था जो है, वह सदा था और सदा होगा। जो पहले नहीं था और आगे नहीं होगा वह आज भी नहीं हो सकता। मैं देख रहा हूं, जो पेड़ पतझड़ में नंगा था, वह वसंत में लहलहा रहा है। जो वसंत में लहलहा रहा था, वह पतझड़ में नंगा है। नंगा होना और लहलहाना पेड़ का अस्तित्व नहीं है। ये उसके अस्तित्व की अभिव्यक्तियां हैं। जीवन और मृत्यु हमारा अस्तित्व नहीं है। ये हमारे अस्तित्व की अभिव्यक्तियां हैं।
जो व्यक्त है, वह अस्तित्व नहीं है। वह अस्तित्व की ऊर्मि-माला है। अस्तित्व उसके नीचे है। इन्द्रिय और मन ऊर्मि-माला के माध्यम से ही अस्तित्व तक पहुंच पाते हैं। इसीलिए उनकी स्वीकृति या अस्वीकृति प्रत्यक्षानुभूति की स्वीकृति या अस्वीकृति नहीं होती।
खिड़की की जाली से छन-छनकर सूर्य की रश्मियां आ रही हैं। उनके आलोक में मैं असंख्य गतिशील रजकणों को देख रहा हूं जो कुछ क्षण पूर्व उपलब्ध नहीं थे।
ध्वनि-ग्रहण का फीता घूम रहा है। मैं पूर्व-परिचित ध्वनि सुन रहा हूं। कुछ क्षण पूर्व यह ध्वनि उपलब्ध नहीं थी।
सूक्ष्म जब स्थूल बनता है, आवृत जब अनावृत होता है और दूरस्थ जब निकटस्थ होता है, तब अव्यक्त व्यक्त और अनुपलब्ध उपलब्ध हो जाता है।
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