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२०८ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
वस्तुओं के योग से निष्पन्न होता है, इसलिए निरपेक्षता की बात करना नितान्त अज्ञान होगा। ___ हमारा दृष्टिकोण सापेक्ष होना चाहिए। हमारे एक विचार के पीछे अनेक अपेक्षाएं होती हैं। सापेक्षता से हमारी मानसिक शान्ति को बल मिलता है। एकांगी दृष्टिकोण से अशान्ति निष्पन्न होती है।
इन इक्कीस दिनों में आप लोगों ने मुझे, जैनेन्द्रजी और दादा धर्माधिकारी को सुना। कभी लगा कि हम लोग भिन्न-भिन्न बातें कर रहे हैं, कभी लगा कि निकट आ रहे हैं। कभी लगा कि विरोधी बातें कर रहे हैं और कभी लगा कि एक ही बात कह रहे हैं।
. इस दुनिया में अनेक मार्ग हैं। आदमी भटक जाता है, किधर जाए? किसे सुने? और किसे माने? निर्णय नहीं कर पाता। एक की बात सुनता है तो वह ठीक लगती है। दूसरे का तर्क आने पर वह ठीक नहीं लगती। इस शब्द के जगत् में न जाने कितने तर्कों और वादों का जाल बिछा है।
आप महाभारत को पढ़िए। कहीं आपको काल की अनन्त महिमा मिलेगी। लिखा है-काल से सारी बातें निष्पन्न होती हैं। समय पर सूर्य उदित होता है, समय पर वृक्ष फलते-फूलते हैं, समय पर वर्षा होती है और समय पर आदमी जन्मता-मरता है। ऐसा लगता है समय ही सब कुछ है।
पुरुषार्थ को सुनेंगे तो लगेगा है कि पुरुषार्थ के सिवाय और कुछ नहीं है। सत्य यही है कि पुरुषार्थ करें।
भाग्य के उदाहरण हजारों मिलेंगे। पढ़ा-लिखा नौकरी कर रहा है और अनपढ़ धनवान बना हुआ है। वर्षों तक पुरुषार्थ किया पर कुछ नहीं बना। नियतिवादी कहते हैं-सब अपने आप हो जाएगा। करने कौन जाता है?
कितने वादों का चक्र है। मन में उलझन पैदा कर देता है। बहुत सारे मानसिक सिद्धान्तों को लेकर उलझे रहते हैं और उनकी मानसिक शान्ति भंग हो जाती है। एकांगी विचारों के आधार पर चलेंगे तो मानसिक शान्ति कभी नहीं मिलेगी। इसलिए दृष्टि को सापेक्ष बनाएं। जो सत्य दुनिया में है उसे सोलह के सोलह आना कहने के लिए किसी के पास शब्द नहीं हैं। मैं बोल रहा हूं और जानता हूं कि अनंत सत्य
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