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परिस्थिति का प्रबोध २०५
अतिक्रमण नहीं होता । विश्व का एक नियम है ध्रुवता । जो सत् है, वह ध्रुव है । इसी नियम के आधार पर विश्व था, है और होगा । विश्व का दूसरा नियम है - परिवर्तनशीलता । जो सत् है वह परिवर्तनशील है। इस नियम के आधार पर विश्व रूपान्तरित हुआ है, हो रहा है और होता रहेगा। परिवर्तनशीलता विश्व का अपरिहार्य नियम है, इसीलिए कुछ बदलता है और कुछ बदलने का हेतु बनता है । परिस्थिति के पट का पांचवां तन्तु है - नियति - सार्वभौम नियम ।
वस्तु की अनेक क्षमताएं उपयुक्त परिस्थिति ( साधन-सामग्री) के अभाव में व्यक्त नहीं हो पातीं। संचित कर्म का भी साधन-सामग्री के बिना पूरा परिपाक नहीं होता । शरीर की लम्बाई और चौड़ाई, रूप और रंग, भौगोलिक वातावरण से प्रभावित होते हैं। मानसिक उतार-चढ़ाव बाह्य सम्पर्कों से प्रभावित होते हैं । विचार बाह्य दृश्यों और रंगों से प्रभावित होते हैं । कोई भी व्यक्ति परिस्थिति के प्रभाव से मुक्त नहीं होता, जो उसके प्रभाव क्षेत्र में होता है। ठंडी हवा चलती है, आदमी कांप उठता है। कम्पन निर्हेतुक नहीं है। कड़ी धूप होती है, पसीना चूने लग जाता है। पसीना निर्हेतुक नहीं है । मन के प्रतिकूल योग मिलता है, आदमी क्रुद्ध हो उठता है । अचिन्त्य सामग्री मिल जाती है, आदमी गर्वोन्मत्त हो जाता है । हर्ष और उल्लास, भय और शोक ये सभी आवेग परिस्थिति के योग से अभिव्यक्त होते हैं । इनकी अभिव्यक्ति से मन का संतुलन बिगड़ता है । फलतः मन अशान्त हो उठता है ।
परिस्थिति के प्रभावक्षेत्र में रहकर मन उससे अप्रभावित नहीं रह सकता। वह भावना से भावित होकर उसके प्रभाव क्षेत्र के बाहर आ जाता है । फिर यह परिस्थिति के हाथ का खिलौना नहीं होता ।
अनित्य - भावना से प्रभावित मन संयोग-वियोग की ऊर्मियों से प्रताड़ित नहीं होता । अशरण - भावना से प्रभावित मन असहाय नहीं होता । एकत्व - भावना से प्रभावित मन सामाजिक जीवन के संघर्षों से व्यथित नहीं होता । मैत्री - भावना से प्रभावित मन आशंका, कुशंका, सन्देह, भय और द्वेष के चक्र से मुक्त हो जाता है। प्रमोद - भावना से प्रभावित मन ईर्ष्या से संत्रस्त नहीं होता । करुणा भावना से प्रभावित मन से क्रूरता विसर्जित हो जाती है । मध्यस्थ-भावना से प्रभावित मन क्रोध और निराशा
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