________________
संकल्प-शक्ति का विकास १६३
भावित हो जाना कि जप्य और जापक में भेद ही प्रतीत न हो। ___ आयुर्वेद में लवणभास्कर को नींबू से भावित किया जाता है। आमलकी रसायन स्वरस भावित होता है, आंवलों के रस में आंवलों की घुटाई होती है। द्रव्य में अन्तर नहीं होने पर भावना से गुणों में अन्तर आ जाता है। जिन द्रव्यों को जिससे भावित किया जाता है, उसकी ही प्रधानता हो जाती है। पांच पुटी अभ्रक और एक हजार पुटी अभ्रक के गुणों में बहुत बड़ा अन्तर हो जाता है। कई संकल्प करते हैं पर घुटाई नहीं करते। दो-चार बार संकल्प दोहराने से उतना फल नहीं मिलता जितना चाहते हैं। घुटाई करने में समय लगता है। जितना समय लगेगा, उतनी ही वस्तु भावित होगी। जिससे भावित करेंगे, उसमें उसके ही गुण प्रधान रहेंगे। नींबू की भावना में नींबू का और अनार के रस की भावना में अनार का गुण प्रमुख रूप से रहेगा।
यही हमारे मन की प्रक्रिया है। मन को भी जिस भावना से भावित किया जाएगा, उसमें वैसा ही स्थायीभाव बन जाएगा। आस्था भिन्न-भिन्न होने का यही कारण है। आस्था के निर्माण में संकल्प का योग महत्त्वपूर्ण है। ____ मंत्र-शास्त्र की प्रक्रिया में संकल्प-शक्ति का बहुत बड़ा योग हैं। संकल्प के लिए सात शुद्धियों की अपेक्षा है :
१. द्रव्यशुद्धि-व्यक्ति का अंतरंग क्रोध, दंभ और ईर्ष्या से मुक्त. तथा ऋजु-सरल होना चाहिए।
२. क्षेत्रशुद्धि-स्थान शान्त और पवित्र होना चाहिए। ३. समयशुद्धि-तीन संध्या-प्रातः, मध्याह्न, सायं। ४. आसनशुद्धि-ध्यानासनों में, कंबल, काष्ठपट्ट या जमीन पर। ५. विनयशुद्धि-उच्चारण में उपयुक्त स्थल पर विराम। ६. मनःशुद्धि। ७. वचनशुद्धि। संकल्प के तीन प्रकार हैं-वाचिक, उपांशु और मानसिक। वाचिक-जो उच्चारणपूर्वक किया जाता है। उपांशु-बाहर भाषा नहीं, किन्तु होंठों के भीतर शब्द होते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org