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ग्रन्थि-मोक्ष १६१
निरसन-यह निर्जरण की प्रक्रिया है। निर्देशन ग्रन्थि को खोलता है और निरसन तोड़ता है। निरसन में चैतन्य इतना प्रबल हो जाता है कि मानसिक चंचलता टिक नहीं सकती, ग्रन्थि टूट जाती है। उसमें सत्य के प्रति आग्रह होता है। बुद्ध ने इसी आग्रह की भाषा में कहा था
'इहासने शुष्यतु मे शरीरं, त्वगस्थिमांसं प्रलयं च यातु । अप्राप्य बोधिं बहुकालदुर्लभां, नैवासनात्कायमिदं चलिष्यति ॥'
सत्य के प्रति आग्रह होने पर ग्रन्थि-भेद हुए बिना नहीं रहता। जितने महापुरुष हुए हैं, उन सबने सत्य के प्रति आग्रह का व्रत लिया था। आग्रह इतना दृढ़ किया कि कार्य-सिद्धि या शरीर का पात। ऐसे दृढ़ आग्रह से ग्रन्थि-छेद सरलता से हो सकता है। निरसन की पद्धति तपस्या की पद्धति है। यह पद्धति निषेध, अस्वीकार या आत्मोन्मुखता की पद्धति है। इससे आत्मविमुखता मिट जाती है। ____ आत्म-विश्लेषण ग्रन्थि को सुलझाता है, निर्देशन ग्रन्थि को खोलता है और निरसन ग्रन्थि को तोड़ना है।
ग्रन्थि मोक्ष का परिणाम सरलता-जीवन की सहजता है। वक्रता और सरलता जीवन के दो पक्ष हैं। जितना टेढ़ापन है, वह जीवन में समस्याएं उभारता है। वास्तविक समस्याएं हमारे जीवन में बहुत नहीं हैं, उनका ताना-बाना मनुष्य स्वयं बुनता है। कुछ लोग सोचते हैं, ऐसा युग आ गया, ऐसा शासन आ गया जो समस्याएं बढ़ रही हैं। समस्याएं बाह्य वृत्त में हो सकती हैं पर उनसे आपको कष्ट नहीं होता। आपको कष्ट तभी होता है, जब आप उनको अपने मन में संजोते हैं। मन का दरवाजा टूटा हुआ होता है, हर कोई भीतर घुस सकता है। यदि वह मजबूत हो तो बाहर का कोई असर नहीं होता। खिड़की बन्द करने से बाहर की शीत लहर भीतर प्रवेश नहीं कर पाती, क्योंकि निरोध मतबूत है। यही स्थिति परिस्थिति की है। यदि मानसिक चंचलता होती है तो वह बाहर की परिस्थिति को तत्काल पकड़ लेती है। एक व्यक्ति प्रतिकूल बात सुनकर टाल देता है। दूसरा उसे बुरा मानकर कुछ करता है और तीसरा उसे अन्याय मान तत्काल प्रतिकार की बात सोचता है। उसके लिए भयंकर घटना बन जाती है। घटना समान होने पर भी अनुभूति की
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