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________________ १५६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्तिन है। आसक्ति जब घनीभूत हो जाती है तब मन में तनाव पैदा होता है। प्रेम का ही उदाहरण लें। प्रेमी व्यक्ति की जिसमें आसक्ति हो जाती है, उसे हर क्षण वही-वही दीखता है, उसकी भूख और नींद भी हराम हो जाती है। इससे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। ____डॉक्टरों ने अनुसंधान करके पता लगाया कि सौ में से साठ रोग तो केवल मानसिक होते हैं। दस-बीस प्रतिशत रोग शारीरिक होते हैं। कुछ रोग कीटाणुओं के कारण भी होते हैं। पर वे भी इसीलिए कि मनुष्य की रोगों से लड़ने की क्षमता क्षीण हो जाती है। हमारे शरीर में लाल अणु जितने कम होते हैं, उतनी ही हमारी प्रतिरोध-शक्ति कम होती चली जाती है। यह सब मानसिक उलझन की ही देन है। इसलिए बाह्य रोग भी हमारे पर तभी प्रभाव डाल सकते हैं जबकि हमारे मन में उलझन हो। ___ भौतिक दृष्टि से अमेरिका बहुत समृद्ध देश है। पर वहां बीमारियों की संख्या बहुत अधिक है। कहते हैं कि वहां पैंतालीस प्रतिशत व्यक्ति मानस-रोगी हैं। भारत भौतिक दृष्टि से यद्यपि काफी पिछड़ा देश है पर मानसिक रोगियों की संख्या यहां पन्द्रह प्रतिशत ही है। कारण इसका स्पष्ट है कि यहां मानसिक तनाव उतना नहीं है। शहरी सभ्यता के साथ-साथ मानसिक द्वन्द्व भी बढ़ते हैं। गांवों में यह स्थिति कम रहती है। यद्यपि वहां खान-पान, रहन-सहन अत्यन्त साधारण है, फिर भी ग्रामीण लोग शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ रहते हैं क्योंकि उनके मानसिक तनाव अत्यन्त अल्प होते हैं। मानसिक तनाव के और भी अनेक कारण हैं। पर उनके प्रतिकार का जो साधन है, वही साधना है। कायोत्सर्ग इसका प्रमुख साधन है। मन को सबल बनाए बिना मानसिक उलझन कभी नहीं मिट सकती। अतः मन को सबल बनाना स्नायविक तनाव से मुक्ति पाने का प्रथम सोपान है। इसे ही दूसरे शब्दों में ग्रन्थिमोक्ष कहा जा सकता है। कायोत्सर्ग की तीन प्रक्रियाएं हैं-सोकर, बैठकर तथा खड़े होकर करना। तीनों में सोकर करने वाली प्रक्रिया सबसे सुगम है। इसमें पहले-पहल आंखें मूंदकर सीधा लेटना होता है। उसके बाद हाथों को ऊपर कर यथाशक्ति सांस भरकर सारे शरीर में तनाव पैदा करना होता है। फिर सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए सहज स्थिति में आना होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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