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स्नायविक तनाव का विसर्जन १५५
तथा होम्योपैथिक पद्धति में भी इस पर सूक्ष्मता से विचार किया गया है। उनका कहना है कि भय से शरीर में ऐंठन पैदा होती है। इससे स्नायुओं पर अस्वाभाविक दबाव पड़ता है और वे कार्य करने में अक्षम बन जाते हैं। यह तो हम स्पष्ट देखते हैं कि भय के समय हमारे शरीर की क्या स्थिति होती है। सारे शरीर में एक प्रकार की सिकुड़न-सी पैदा हो जाती है। कभी-कभी तो आकस्मिक भय से हार्ट फेल तक हो जाता है। शास्त्रों में अकाल-मृत्यु के सात कारणों में से भय को भी एक कारण माना है। वैज्ञानिक लोग भी इसका समर्थन करते हैं।
घृणा-घृणा की अभिव्यक्ति को साहित्य में नाक-भौंह सिकोड़ना कहकर बताया गया है। इससे स्पष्ट है, जब हमारे मन में घृणा के भाव आते हैं, तब शरीर में अपने आप तनाव आ जाता है। उससे रक्त-क्रिया में परिवर्तन हो जाता है तथा क्षीणता प्राप्त होती है।
क्रोध-यह तो प्रमाणसिद्ध बात है कि क्रोधी मनुष्य के मन में हमेशा तनाव बना रहता है। इससे वह किसी भी कार्य को मुक्तभाव से नहीं कर पाता। वैज्ञानिकों ने क्रोधी मनुष्य के रक्त को निकालकर उसे चूहों के शरीर में प्रविष्ट करवाया तो उनमें विचित्र हरकत पैदा हो गई; यहां तक कि कई चूहों की तो उससे मृत्यु भी हो गई, क्योंकि क्रोधि से रक्त में विषाणु फैल जाते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि माता यदि क्रोध के समय बच्चे को स्तनपान कराए तो उससे कभी-कभी बच्चे की मृत्यु तक भी हो जाती है।
हमने राजस्थान में एक घटना सुनी थी। एक गांव में बहुत ही शान्त प्रकृति का व्यक्ति था। साधारणतया उसे कभी क्रोध नहीं आता था। पर एक दिन अध्यापक ने उसके लड़के को पीट दिया। उसे जब इस बात का पता चला तो इतना गुस्सा आया कि उस आवेश में वह उसी समय स्कूल की तरफ चल पड़ा। पर वह थोड़ी ही दूर गया था कि इतने में उसे हृदय का दौरा पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
कपट-दूसरों को ठगना बहुत प्रिय होता है। बल्कि उस मनुष्य को होशियार माना जाता है जो चतुराई से दूसरों को ठग सके। पर इससे मानसिक तनाव बहुत बढ़ जाता है। क्योंकि जब हम किसी को ठगते हैं तो इसका अर्थ होता है कि वस्तु के प्रति हमारे मन में तीव्र आसक्ति
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