________________
उदर-शुद्धि
१३६
बड़ी आंतें स्पंदन के द्वारा मल का विसर्जन करती हैं। तीन कारणों से उसकी गति में मन्दता आ जाती है-(क) अवस्था, (ख) वेग-निरोध, (ग) अतिभोजन।
अवस्था-ज्यों-ज्यों अवस्था बढ़ती है, आंतों में श्लथता आती जाती है। अवस्था-वृद्धि के साथ क्षीण होने वाला अन्त्र-शक्ति का स्पन्दन योग मुद्रा से पुनः पुष्ट हो जाता है।
वेग निरोध-समय पर उत्सर्ग न करने से आंतें संकेत देना छोड़ देती हैं। विवशता की परिस्थिति या प्रमाद के कारण कई लोग मल के वेग को रोक लेते है। आंत के संकेत की बार-बार उपेक्षा करने के कारण वह संकेत देना बन्द कर देती है।
कई लोग बड़े गर्व के साथ कहते हैं-हमें दो-दो, तीन-तीन दिन तक मलोत्सर्ग की आवश्यकता का ही अनुभव नहीं होता। पर वे भूल जाते हैं कि आंत के संकेतों की उपेक्षा कर वे उस अनुभूति को खो बैठे हैं। ___ अतिभोजन-अतिभोजन से आंत श्लथ हो जाती है। वह मल को आगे नहीं ढकेल पाती। इस प्रकार कोष्ठ-बद्धता हो जाती है। उससे चिंतन में कंठा आती है। प्रसन्नता के लिए अनिवार्य है कि मल-संचय न हो। दो दिन तक खाना न खाया जाए तो भी आंतों को पचाने के लिए शेष रह जाता है। पर मल का उत्सर्ग न हो तो एक दिन में बेचैनी हो जाती है। अन्त्र में मल भरा रहने से अपानवायु का द्वार रुद्ध हो जाता है। फिर वह ऊपर जाती है और हृदय को धक्का लगाती है। जिसे हम सामान्यतया हृदय-रोग समझते हैं वह बहुत बार यही होता है। __अपने शरीर के तापमान से अधिक ठण्डा और अधिक गर्म भोजन भी हानिप्रद होता है। उससे आंत और दांत दोनों विकृत होते हैं। भोजन का सम्बन्ध आवश्यकता-पूर्ति से है और उसका सम्बन्ध जब स्वाद से हो जाता है तब मर्यादा का अतिक्रमण और विपर्यय होने लगता है। विहार
विहार का अर्थ है-नियमित उठने-बैठने, सोने-जागने की चर्या। जिस प्रकार एक साथ बहुत ज्यादा खा लेना हानिकर है उसी प्रकार एक साथ बहुत बैठे रहना भी स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकर है। इससे अग्नि मन्द
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org