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________________ १३८ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति थोड़ा-थोड़ा बार-बार खाने को कहते हैं। उनका आशय संभवतः हल्के भोजन से है। अलसर जैसे रोग में बार-बार खाया जाता है। भस्म रोग में सब कुछ स्वाहा हो जाता है। अलसर और भस्म बड़े रोग हैं। तीव्र दोष में छोटे दोष समा जाते हैं। ___भोजन का ऋतुओं से भी सम्बन्ध है। वर्षाकाल में अग्नि मन्द होती है, इसलिए तपस्या इस ऋतु में अधिक सुगमता से होती है। शीतकाल की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में अग्नि मन्द रहती है। दोनों ऋतुओं में भोजन का भी अन्तर रहता है। लूंसकर खाने वाले बौद्धिक श्रम नहीं कर पाते। हल्का भोजन करने वाले अधिक स्वस्थता से वह कर सकते हैं। रक्त का संचार आनुपातिक होने से उसमें बाधा नहीं पड़ती। चिन्तन-मनन करने में रक्त का दौर मस्तिष्क की ओर होने लगता है, इसलिए आंतों को वह कम मात्रा में मिल पाता है। ज्यादा खाने से रक्त का संचार उदर की ओर ज्यादा होता है, इसलिए मस्तिष्क को वह कम मात्रा में मिल पाता है। दिमाग को शक्ति न मिलने से कुंठा आ जाती है। शक्ति-व्यय के आधार पर ही भोजन की मात्रा निश्चित होती है। इसलिए शारीरिक श्रम और बौद्धिक श्रम में भोजन की मात्रा और प्रकार का अन्तर होता है। बार-बार चाय पीना भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद नहीं है। इससे स्फूर्ति मिल सकती है पर बल, बुद्धि और वीर्य के लिए यह अनुकूल नहीं है। निहार आहार से अधिक महत्त्व निहार का है। ठीक खाने का महत्त्व तो है पर उससे अधिक महत्त्व है ठीक समय पर उत्सर्ग का।। - उत्सर्ग के प्रति कम ध्यान दिया जाता है। उत्सर्ग क्रिया ठीक न होने से अपान वायु दूषित होती है। उससे मानसिक प्रसन्नता नहीं रहती। गुदा चक्र का मानसिक प्रसन्नता के साथ गहरा सम्बन्ध है। समान्यतः आहार के असार भाग का चौबीस घंटे बाद उत्सर्ग होता है और तीन दिन की अवधि में तो हो ही जाता है। इस अवधि के बाद भी यदि मल आंतों में रहता है तो उससे आलस्य, जड़ता और बुद्धि-मन्दता होती है। समान्यतः दिन की अवधि रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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