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१२८ मैं : मेरा मन मेरी शान्ति
अशाश्वत को शाश्वत मान उसमें परिवर्तन नहीं करते वे रूढ़ बनकर कुछ खोते ही हैं।
३०. आग्रह और अनाग्रह
विकास का पहला सूत्र है आग्रह और विकास का पहला सूत्र है अनाग्रह। अनाग्रह और आग्रह - दोनों अत्यन्त उपादेय हैं। अपनी-अपनी भूमिका में आग्रह के स्थान में अनाग्रह और अनाग्रह के स्थान में आग्रह होने पर विकास का क्रम रुक जाता है 1
आग्रह के समर्थन का स्वर कण-कण में मुखरित है। एक आदमी हिन्दुस्तान का नागरिक है । यदि उसके मन में हिन्दुस्तान की सुरक्षा के प्रति आग्रह नहीं होगा तो क्या हिन्दुस्तान की प्रभुसत्ता सुरक्षित रह जाएगी?
एक आदमी की मातृभाषा बंगाली है । यदि उसके मन में बंगला भाषा के प्रति आग्रह नहीं होगा तो क्या उसका विकास सम्भव होगा?
एक आदमी जाति से क्षत्रिय है । यदि उसके मन में क्षत्रिय जाति के प्रति आग्रह नहीं होगा तो क्या उस जाति का भविष्य बहुत उज्ज्वल रहेगा?
एक आदमी जैन धर्म का अनुयायी है। यदि उसके मन में जैन धर्म के प्रति आग्रह नहीं होगा तो क्या उस धर्म का अस्तित्व प्रभावशाली बना रहेगा ?
कोई भी मनुष्य किसी एक के प्रति आग्रही नहीं होगा तो वह किसी का नहीं होगा । उसका कोई देश, भाषा, जाति और धर्म नहीं होगा । वह किसी देश, भाषा, जाति और धर्म का होकर उसका भला नहीं कर सकेगा। इस सचाई के सन्दर्भ में आग्रह का होना अत्यन्त अनिवार्य है।
पाकिस्तान के कर्णधार श्री जिन्ना के मन में पाकिस्तान के निर्माण का आग्रह नहीं होता तो विश्व के मानचित्र पर पाकिस्तान नामक राष्ट्र का अस्तित्व नहीं होता ।
दक्षिण वियतनाम और उत्तर वियतनाम की लड़ाई केवल वैचारिक
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