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सत्य १०६
दृढ़ता से खींचा किन्तु पीपल नहीं चला।
पथिक ने कहा- 'बहन! पीपल ऐसे नहीं जाएगा। वह पीपल पर चढ़ा, एक टहनी तोड़ी। उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला-'लो! यह पीपल अपनी सास को दे देना।' ___ आचार्य भिक्षु ने इस कथा द्वारा अज्ञानलब्ध आग्रह का चित्रण किया है। किन्तु आग्रह का यह एक रूप ही नहीं होता। अपनेपन का भी आग्रह होता है। ___ एक आदमी तलैया में बैठा जल पी रहा था। जेठ की गर्मी में उसका जल सूख गया था। थोड़ा-बहुत बचा, वह मिट्टी से मिला हुआ था। एक पथिक उस मार्ग से आया। उसने कहा, 'थोड़ी दूर पर बड़ा तालाब है, स्वच्छ पानी है। वह पीओ। क्यों पीते हो यह मिट्टी-मिला पानी? 'यह मेरे पिता की तलैया है, मैं इसी का जल पीऊंगा'-यह कह वह फिर जल पीने का प्रयत्न करने लगा।
इस प्रकार सोचने और व्यवहार करने वाले लोग इस दुनिया में कम नहीं हैं। यदि अपनेपन का आग्रह नहीं होता तो सत्य का मुंह आवरणों से ढंका नहीं होता।
मोह-जनित आग्रह इससे भी भयंकर होता है। धोबी के घर एक कुत्ता रहता था। उसका नाम था सताबा। धोबी के दो पत्नियां थीं। वे परस्पर बहत लड़तीं। लड़ते समय एक-दूसरे को गाली देतीं, 'आयी है सताबा की बैर (पत्नी)।' कुत्ता इस नाम के मोह में फंस गया। उन्होंने कुत्ते को रोटी डालना बन्द कर दिया। वह भूख से सूख गया। पड़ोस के कुत्ते ने कहा- 'चलो, घूमें और रोटी खाएं।' उसने कहा, 'मैं अपनी दो पत्नियों को छोड़कर बाहर कैसे जा सकता हूं?
संस्कार का आग्रह भी किसी से कम नहीं होता। एक चींटी कहीं जा रही थी। बीच में दूसरी चींटी मिल गई। दोनों ने बातचीत की। अतिथि-चींटी ने सुख संवाद पूछा तो वहां खड़ी चींटी ने कहा-'बहन! और तो सब ठीक है पर मुंह खारा बना रहता है।' अतिथि-चींटी ने कहा- 'तुम नमक के पर्वत पर रहती हो, फिर मुंह खारा क्यों नहीं होगा? चलो मेरे पास। मैं मिसरी के पहाड़ पर रहती हूं। वहां तुम्हारा मुंह मीठा हो जाएगा।' वह अतिथि-चींटी के साथ चल पड़ी। वहां पहुंचने पर भी
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