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१०६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
सिंह चलता है, तब मुड़कर पीछे देखता है। क्या धार्मिक के लिए पीछे देखना आवश्यक नहीं है? सिंहावलोकन किए बिना अतीत और वर्तमान में सामंजस्य स्थापित नहीं किया जा सकता। आत्मालोचन किए बिना धर्म पर आने वाले आवरण को तोड़ा नहीं जा सकता। अहंभाव व्यक्ति को क्रूर बनाता है। क्रूरता प्रतिहिंसा को जन्म देती है। वर्तमान की परिस्थितियों में ऐसा फलित हो रहा है। इस रोग की चिकित्सा है मृदुता, मृदुता और एकमात्र मृदुता।
एक बार गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा- 'भन्ते! मृदुता से क्या प्राप्त होता है?
भगवान् ने कहा-'गौतम! मृदृता से अपने आपको दूसरों से अतिरिक्त मानने की भावना मर जाती है।'
. इस दुनिया में कोई भी आदमी भगवान् के घर से नहीं आया है। हम सब मनुष्य हैं। इसलिए हर मनुष्य दूसरे मनुष्य से मानवीय व्यवहार की अपेक्षा रखता है।
२०. लाघव
एक आदमी तालाब में स्नान कर रहा था। उसने गहरी डुबकियां लीं। घंटा भर तक वह जल में तैरता-डूबता रहा। आखिर बाहर आया। घर जाते समय जल का घड़ा भर लिया। घड़ा कंधे पर रख वह चलने लगा। घर कुछ दूर था। मार्ग में वह थक गया। उसने मन-ही-मन सोचा-तालाब में डुबकी ली तब सैकड़ों टन पानी मेरे सिर पर था। पर मुझे कोई भार का अनुभव नहीं हुआ। घड़े में दस-बारह किलो पानी होगा, फिर भी मुझे भार का अनुभव हो रहा है। यह क्यों? ऐसा प्रश्न उन सबके मन में पैदा होता है, जो व्यापक और सीमित-दोनों क्षेत्रों का अवगाहन करते हैं।
तालाब में जल मुक्त होता है, उसका अवगाह-क्षेत्र व्यापक होता है, इसलिए भार का दबाव विकेन्द्रित हो जाता है। घड़े में जल बंधा होता है, उसका अवगाह-क्षेत्र सीमित होता है, इसलिए भार का दबाव केन्द्रित हो जाता है। जब धन का संग्रह सीमित क्षेत्र में होता है, तब
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