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________________ . मार्दव १०५ अहंभाव से भर जाता है। मनुष्य में लम्बे समय से हीनता और उच्चता का संघर्ष चल रहा है। अमेरिका जैसे सुसंस्कृत देश में जातीय दंगे होते हैं। गोरे आदमी काले आदमियों को हीन मानते हैं। उसकी प्रतिक्रिया जातीय द्वेष का रूप ले चुकी है। हिन्दुस्तान जैसे धार्मिक देश में स्पृश्य और अस्पृश्य-ये दो श्रेणियां आज भी चल रही हैं। न जाने कितने लोगों ने अस्पृश्यता के अभिशाप से अभिशप्त होकर धर्म-परिवर्तन किया और कर रहे हैं। जिस वर्ग ने उत्कर्ष प्राप्त किया, उसने दूसरे वर्ग को अपने से निम्न ठहराकर ही संतोष की सांस ली। यह मनुष्य का मद है। मद अधर्म का द्वार है। इसमें प्रवेश पाकर मनुष्य ने सदा दूसरे मनुष्यों के प्रति क्रूर व्यवहार किया है। भगवान महावीर से पूछा गया-'भन्ते! धर्म के द्वार कितने हैं? भगवान् ने कहा- 'धर्म के चार द्वार हैं।' 'कौन-कौन-से, भन्ते? भगवान् ने कहा-'शान्ति, मुक्ति, ऋजुता और मृदुता।' मृदुता धर्म के प्रासाद में प्रवेश पाने का एक द्वार है। पहले द्वार और फिर प्रासाद । द्वार में प्रवेश पाए बिना कोई प्रासाद तक पहुंच नहीं सकता। क्या मृदु बने बिना कोई धार्मिक हो सकता है? आदमी धार्मिक तो है किन्तु मृदु नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि दिन तो है पर प्रकाश नहीं है। प्रकाश के बिना दिन का अस्तित्व आपको मान्य नहीं है। फिर मृदुता के बिना धर्म का अस्तित्व आपको कैसे मान्य होगा? धार्मिक जगत् ने मृदुता को मान्यता दी है पर उसका अर्थ-बोध बहुत संकुचित है। मृदुता का अर्थ समझा जा रहा है विनम्रता। यह समझ त्रुटिपूर्ण नहीं है, किन्तु अपूर्ण है। मृदुता का पूर्ण अर्थ है-कठोरता का विसर्जन, क्रूरता का विसर्जन। जिसका हृदय मृदु नहीं है, उसका सिर झुक जाता है, फिर भी क्या वह मृदु है? मृदु वह हो सकता है जिसके हृदय में करुणा का अजस्र स्रोत प्रवाहित है। जिसके हृदय में करुणा का अजस्र स्रोत प्रवाहित होता है, वह शोषण नहीं कर सकता, अपनी सुख-सुविधा में दूसरों की सुख-सुविधा को विलीन नहीं कर सकता. दूसरों को हानि पहुंचे, वैसा कार्य नहीं कर सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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