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६६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
इसीलिए राष्ट्र में तेज नहीं आ रहा है । धर्म की परिधि, जो घेरा मात्र बन गया है, को तोड़ने की ओर गति नहीं होगी तो व्यक्ति की महानता प्रकट नहीं होगी । व्यक्ति की महानता के बिना राष्ट्र की महानता भी व्यक्त नहीं होगी ।
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मनुष्य दो खिड़कियों के बीच जी रहा है। एक खिड़की बाहर की ओर खुलती है, दूसरी भीतर की ओर । बाहर की खिड़की खुली है, भीतर की खिड़की बन्द है। दोनों के बीच में मनुष्य का व्यवहार चलता है बाहर की खिड़की से जो आ रहा है, वह काम्य नहीं है। बाहर से जो आता है, वह है दण्ड-शक्ति । दण्ड-शक्ति से राज्य - शक्ति और समाज - शक्ति चलती है । बाहर की खिड़की यदि बन्द हो जाए तो नैतिकता का उदय हो जाए । भीतर की खिड़की से कर्तव्य की बात प्राप्त होती है, जो मनुष्य के अन्तराल में दबी हुई है । जो भीतरी खिड़की से अपरिचित हैं, वे दण्ड-शक्ति से परिचित हैं
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मनुष्य पशु नहीं है । पशु को दण्ड - शक्ति से हांका जाता है । हम प्रतिदिन देखते हैं कि नदी से गधों पर रेत लादकर लायी जाती है और उन्हें डण्डे से मारा जाता है । वे पशु हैं । क्रांति कर नहीं सकते और सरकार के सामने अपना विरोध भी नहीं कर सकते । मनुष्य के पास स्मृति है और प्रतिरोध की शक्ति है । इसलिए वह ऐसा अन्याय नहीं सह सकता । उसे दण्ड-शक्ति से हांका नहीं जा सकता। जिस देश में मनुष्य को हांका जाता है, वह पशुओं का देश है । पाशविक सत्ता से ऊपर उठने के लिए मनुष्य ने जिस सत्ता की सृष्टि की, वह व्रत है ।
राजा दिलीप महर्षि वशिष्ठ की गाय को चरा रहा था । सामने सिंह आ गया। उसे देख राजा गाय की सुरक्षा के लिए आगे आ गया। उसे ऐसा करते देख सिंह ने कहा
एकातपत्रं जगतः प्रभुत्वं नवं वयः कान्तमिदं वपुश्च । अल्पस्य हेतोर्बहुहातुमिच्छन्, विचारमूढः प्रतिभासि मे त्वम् ।
- तुम्हें एकछत्र राज्य प्राप्त है । यौवन और सुन्दर शरीर प्राप्त है । गाय को बचाने के लिए इन्हें खो रहे हो - अल्प के लिए बहुत को गंवा रहे हो । मुझे लग रहा है तुम विचार - मूढ़ हो ।
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