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धर्म : वैज्ञानिक या अवैज्ञानिक
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२. कोई संस्थान छोड़ता है, धर्म नहीं छोड़ता। ३. कोई धर्म और संस्थान दोनों छोड़ता है। ४. कोई धर्म और संस्थान दोनों रखता है।
१२. धर्म : वैज्ञानिक या अवैज्ञानिक
धर्म वर्तमान की समस्या का समाधान दे सकता है? यह प्रश्न आज के चिंतनशील मनुष्य मन-ही-मन पूछते हैं। संगोष्ठी में इसकी चर्चा भी होती है। पर इसका उत्तर कौन दे? जिनका धर्म चल रहा है वे धर्म-प्रवर्तक आज विद्यमान नहीं हैं। विद्यमान हैं उनकी वाणी और वाणी को अपनी सीमा में समेटे हुए शास्त्र! वाणी एक है, उसके अर्थ अनेक हैं। शास्त्र एक है, उसके भाष्य अनेक हैं। फलतः धर्म भी अनेक हैं।
सत्य एक है। वह व्यक्ति-व्यक्ति के लिए अलग नहीं हो सकता। मेरा और तुम्हारा सत्य अलग नहीं हो सकता। फिर मेरा और तुम्हारा धर्म अलग कैसे हो सकता है? धर्म यदि सत्य है तो वह व्यक्तिशः अलग नहीं होना चाहिए। और यदि वह सत्य नहीं है तो उसे बहुत मूल्य नहीं दिया जाना चाहिए। __ धर्म और सत्य की अनगिन परिभाषाएं हुई हैं पर आज भी वह अपरिभाषित जैसा प्रतीत हो रहा है। सत्य क्या है? जो अस्तित्व है, वही सत्य है। धर्म क्या है? चेतना की अपने अस्तित्व के प्रति जागरूकता है, वही धर्म है। अस्तित्व जब विभिन्न संदर्भो में व्याख्यात होता है, तब सत्य के अनेक रूप बन जाते हैं। धर्म जब विभिन्न अनुभवों के आलोक में रूपायित होता है, तब धर्म के अनेक रूप बन जाते हैं। धर्म के अनेक रूप हैं इसीलिए यह प्रश्न उठता है-क्या धर्म वैज्ञानिक है? वैज्ञानिक युग ने इस कथन को और अधिक उत्तेजना दी है। विज्ञान प्रयोग-सिद्ध तथ्य का प्रतिपादन करता है। वैज्ञानिक परीक्षण का परिणाम देश और काल की सीमा से अतीत होता है। हर देश और हर काल में समान ही परिणाम प्राप्त होता है। क्या धर्म वैज्ञानिक है? क्या उसे परीक्षण की कसौटी पर कसा जा सकता है? क्या उसकी परीक्षा का देशकालातीत परिणाम प्राप्त होता है? ये बहुत सारे प्रश्न हैं, जो धर्म की वैज्ञानिकता
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