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धर्म की परिभाषा ७
करेगा तब तक अन्य को कार्य की प्रेरणा नहीं मिल सकेगी और न धर्म का तेजस्वी रूप ही स्पष्ट होगा। उपासना मार्ग के स्वरूप को थोड़ा अलग करके और स्वयं में अध्यात्म-जागरण से ही धर्म व्यवहारगत हो सकता है। इसके बाद धर्म का उपदेश देने की जरूरत नहीं रहेगी। ___ भारतीय चिन्तन विगत शताब्दियों में कुंठित हो गया, फलतः नया उन्मेष कम आया है। आचारहीन उपासना हमेशा खतरनाक है। आज नया चिन्तन आ रहा है जिसे रोका भी नहीं जा सकता। कोरी उपासना के आधार पर कोई भी धर्म नहीं टिक सकता।
११. धर्म की परिभाषा
धर्म का इतिहास बहुत पुराना और दीर्घकाल तक रहने वाला है। जीवन और मृत्यु के रहस्य जब तक रहेंगे तब तक धर्म रहेगा। धर्म को समाप्त करने का प्रयास करने वाले थक गए हैं और इसके विपरीत धर्म का प्रचार अधिक ही हुआ है। रूस पिछले पैंतीस वर्षों से धर्म नष्ट करने का प्रयास करता रहा है किन्तु अब वहां का सत्तारूढ़ दल यह स्वीकार कर चुका है कि अनेक प्रयत्नों के बावजूद धर्म कम होने की अपेक्षा बढ़ा है। रूस में इन पिछले पैंतीस वर्षों में धार्मिक श्रद्धा बढ़ी है।
धर्म मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। अज्ञात के विषय में चिन्तन करने में धर्म से मनुष्य को सहारा मिलता है। धर्म हमारी आत्मा की पवित्रता है अर्थात कषाय-मुक्ति या राग-द्वेष से मुक्त होना धर्म है। शेष सारा प्रपंच है। अपने स्वभाव में रहना धर्म है। धर्म के कारण विभीषिका, युद्ध और हत्याकांड नहीं हुए हैं। जहां अतिरिक्त मूल्य होता है उसके आसपास लड़ाइयां होती हैं। जैसे आज राजनीति का अतिरिक्त मूल्य बढ़ा है, फलतः उसके लिए लड़ाइयां होती हैं। इसी प्रकार पहले धर्म का अतिरिक्त मूल्य था अतः उसके आसपास लड़ाइयां हुईं।
धर्म और उसका संस्थान ये दो बातें हैं। धर्म अरूप और अमूर्त है किन्तु मनुष्य मूर्त चाहता है। मनुष्य ने ज्ञान का मूर्त पुस्तकें, काल का मूर्त घड़ियां और भगवान् का मूर्त प्रतिमा को बना लिया। यही धर्म के
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