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________________ नई अर्थनीति के पेरामीटर के प्रति इतना आकर्षण है और न दूसरी किसी अर्थनीति के प्रति इतना आकर्षण है। आज आकर्षण है केवल इन दो प्रणालियों के प्रति और उसमें भी उस राष्ट्रीय नीति के प्रति, जो मेक्रो, अर्थनीति के आधार पर चल रही है। राष्ट्र अपने संसाधनों को इतना बढ़ाए, जिससे सब सम्पन्न बन जाएं और संसाधनों का प्रचुरतम उपयोग किया जा सके। इसके प्रति आकर्षण है। वर्तमान समाज की चेतना इन्द्रिय स्तर की चेतना है। इन्द्रिय स्तर की चेतना का आर्थिक प्रचुरता में आकर्षण होना स्वाभाविक है। इसलिए इन प्रणालियों ने जनता को, राष्ट्रों को बहुत आकर्षित किया है। त्रुटि है अर्थ-व्यवस्था में प्रश्न है फिर नई अर्थव्यवस्था की मांग क्यों? हर मांग के पीछे कोई कारण होता है। निष्प्रयोजन कोई मांग पैदा नहीं होती । इस प्रश्न का उत्तर सीधा है । हिंसा बहुत बढ़ी है। तनाव बढ़ा है, मानसिक अशांति बढ़ी है और विश्व शान्ति के लिए भी खतरा बढ़ा है। आदमी खतरे में ही जी रहा है। वैयक्तिक और पारिवारिक जीवन में समस्याएं बढ़ी हैं। हत्या, आत्महत्या, तलाक आदि-आदि अब आम बात हो गए हैं। ऐसी स्थिति में आदमी को सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है-कहीं न कहीं हमारी आर्थिक नीति में, अर्थव्यवस्था में कोई त्रुटि अवश्य है, जिससे यह पौध विकसित हो रही है। मुड़ कर देखने का एक अवसर मिला है। स्वर उठ रहा है—अब एक अर्थव्यवस्था लागू होनी चाहिए। अब मेक्रो से भी काम नहीं चलेगा, एक ग्लोबल इकोनामी या जागतिक अर्थव्यवस्था होनी चाहिए । वैश्विक अर्थनीति होनी चाहिए। अगर पर्यावरण की समस्या सामने नहीं आती तो ग्लोबल इकोनामी की बात भी नहीं उभरती। विकसित राष्ट्रों ने संसाधनों पर बहुत कब्जा किया। बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किये और इतना प्रदूषण पैदा किया कि पर्यावरण के लिए खतरा पैदा हो गया । जंगलों की कटाई और धरती का अतिशय दोहन हुआ, प्रकृति का सारा संतुलन ही गड़बड़ा गया। इस बात पर अब ध्यान गया है कि शक्तिशाली राष्ट्र दूसरों के लिए कल्याणकारी कम बन रहे हैं, खतरा ज्यादा बन रहे हैं । वे शोषण करने में लगे हुए हैं। सहायता कम करते हैं, शोषण अधिक करते हैं। आर्थिक साम्राज्य खड़ा करने और उसे मजबूत बनाने की होड़ लगी हुई है। गुलामी की स्थिति पुराने जमाने में युद्ध के द्वारा सत्ता का विस्तार होता था और साम्राज्यवादी मनोवृत्ति का पोषण होता था। अब वह बात नहीं रही। आज प्रभुसत्ता उसकी है, जिसका बाजार पर अधिकार है। विकसित राष्ट्रों में यह होड़ लगी हुई है कि कौन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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