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नई अर्थनीति के पेरामीटर
अर्थशास्त्र के संदर्भ में हमने महावीर, गांधी, मार्क्स और केनिज का एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया । कौन-सा विचार सत्य है और कौन-सा मिथ्या-यह प्रश्न हमारे सामने नहीं है। एकान्तवादियों के सामने यह प्रश्न हो सकता है कि अमुक प्रणाली सत्य है और अमुक प्रणाली मिथ्या है, किन्तु अनेकान्त में सत्यांशों का समाहार और समन्वय होता है। अनेकान्त के अनुसार कोई भी विचार ऐसा नहीं है, जिसमें सत्यांश न हो और कोई भी विचार ऐसा नहीं है जो पूर्ण सत्य हो । जो भी विचार है, वह सत्य का एक अंश है और जो भी हमारी अभिव्यक्ति है, वह सत्यांश की एक अभिव्यक्ति है। समग्र सत्य को कहने के लिए न तो हमारे पास कोई शब्द है और न सोचने के लिए कोई मस्तिष्क । इसलिए सत्यांशों का ग्रहण, स्वीकृति और अभिव्यक्ति-यह सत्य की दिशा में प्रस्थान का राजमार्ग बनता है । यह मांग क्यों ?
आज नये विश्व की व्यवस्था की मांग है, नयी समाज व्यवस्था और नयी अर्थ व्यवस्था की मांग है । यह मांग क्यों है ? इसलिए है कि हमने सत्यांश को सर्वांशत: समग्रता से सत्य मान कर व्यवहार शुरू कर दिया। आज की जो अर्थनीति है, वह मुख्यत: माइक्रो इकोनोमिक्स और मेक्रो इकोनोमिक्स—इन दो के आधार पर चल रही है । माइक्रो इकोनोमिक्स की व्यवस्था चल रही थी किन्तु केनिज ने जब से मेक्रो इकोनोमिक्स का प्रतिपादन किया, आर्थिक क्रान्ति का स्वर प्रखर हुआ, अनेक राष्ट्र उससे प्रभावित हुए। मेक्रो इकोनोमिक्स का मूल है—विशाल पैमाने पर उद्योग लगाओ, उत्पादन करो। यह सब बड़े पैमाने पर करो, जिससे आज की बढ़ती हुई आबादी की भूख को मिटाया जा सके। कोई भी नहीं कहेगा कि यह उद्देश्य गलत है। यही उद्देश्य सामने रखा– भूखी और पीड़ित जनता की पीड़ा को दूर किया जा सके, उसको रोटी, कपड़ा, मकान मिल सके, उसकी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। उद्योगों का जाल बिछाए बिना ऐसा करना संभव नहीं है। स्तर इन्द्रिय-चेतना का
वर्तमान में इन दो अर्थनीतियों के प्रति बहुत आकर्षण है । न गांधी की अर्थनीति
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