________________
७९
महावीर, मार्क्स, केनिज और गांधी मन में करुणा थी और इसी से प्रेरित होकर ही उन्होंने साम्यवादी अर्थशास्त्र का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा—गरीबी को मिटाया जा सकता है। गरीबी और अमीरी-ये दोनों मनुष्य-कृत हैं, इसलिए मनुष्य इन दोनों को समाप्त कर सकता है। गरीबी मनुष्य-कृत है, इसलिए मनुष्य उसे मिटा सकता हैं। इसी प्रकार अमीरी भी मनुष्य-कृत है। गरीबी और अमीरी का कारण
इस चिंतन में मार्क्स महावीर के निकट आ जाते हैं। महावीर का भी इस अर्थ में यह सिद्धान्त रहा.---अमीरी और गरीबी मनुष्य-कृत हैं या द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव कृत हैं। ये दोनों न कोई ईश्वरीय देन हैं, न कोई कर्म-कृत हैं। बहुत सारे दार्शनिक इन्हें कर्मकृत मानते थे। बहुत सारे जैन लोग भी इन्हें कर्मकृत मान लेते थे किन्तु वास्तव में जो जैनों का कर्मशास्त्र है, उसका अभिमत है-अमीरी और गरीबी, धन मिलना और उसका चले जाना, यह कोई कर्म का परिणाम नहीं हैं। यह कालकृत, परिस्थितिकृत, क्षेत्रकृत या विशेष अवस्थाकृत एक पर्याय है, जिससे आदमी गरीब बन जाता है या अमीर बन जाता हैं। यह कोई शाश्वत तत्व नहीं है कि गरीब गरीब रहेगा और अमीर अमीर रहेगा।
यह मानवीय है, मनुष्यकृत है, इसलिए इसे बदला जा सकता हैं, परिवर्तन किया जा सकता है। इस आधार पर करुणा की प्रेरणा पाकर मार्क्स ने साम्यवादी अर्थ व्यवस्था का प्रतिपादन किया और उसमें बतलाया--मनुष्य आर्थिक स्थिति से आगे जा सकता है। वह भूखा रहे, यह कोई कर्म का विधान नहीं है। कपड़ा न मिले, रोटी न मिले, यह कोई कर्म का फल नहीं है। इसे एक व्यवस्था के द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है।
केनिज के पीछे प्रेरणा है स्वार्थ की। संपन्नता का विकास और सबको संपन्न बना देने की प्रेरणा से वह भावित था। हर आदमी संपन्न बन जाए। इसमें स्वार्थ की प्रेरणा रही। उनका प्रतिपादन रहा-स्वार्थ सबसे बड़ी प्रेरणा है। इसे जितना उभारा जायेगा, उतना ही विकास होगा। केनिज का सारा सिद्धान्त ही स्वार्थ को उभारने का है। लोभ बढ़ाओ, स्पर्धा करो, आर्थिक विकास होगा। साध्य
तीसरा पेरामीटर है साध्य । साध्य क्या हो? आदमी कोई भी कार्य करता है, उसमें साध्य का निर्धारण पहले करता है फिर साधन का चुनाव करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org