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महावीर का अर्थशास्त्र अभिमुखता ____ कौन व्यक्ति किस दिशा में जा रहा है, उसका मुख किधर है, इसके आधार पर उसके विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है।
___ महावीर आत्माभिमुख हैं। उनका मुख, उनकी दिशा अध्यात्म की ओर है। गांधी ईश्वराभिमुखी हैं। वैष्णव संस्कारों में पले-पुसे होने के कारण उन्होंने ईश्वर को सब कुछ माना। उनका एक सूत्र था- 'ईश्वर ही सत्य है।' किन्तु जैसे-जैसे दृष्टिकोण व्यापक बना, संपर्क व्यापक बना, श्रीमद् राजचन्द्र जैसे लोगों के संपर्क के कारण जैन धर्म का प्रभाव भी उन पर बहुत रहा। व्यापक संपर्क और प्रभावों के कारण गांधी ने ईश्वर सत्य है, इस सूत्र को उलट दिया। उत्तरकाल में उनका सूत्र बन गया—'सत्य ही ईश्वर है।' ईश्वराभिमुखी कहें या सत्याभिमुखी एक ही बात
मार्क्स और केनिज-ये दोनों शद्ध रूप में अर्थशास्त्री है, दोनों पदार्थाभिमखी हैं। मार्क्स भी पदार्थाभिमुखी हैं और केनिज भी पदार्थाभिमुखी हैं। इनका मुख पदार्थ की ओर है, अर्थ और संपदा की ओर है।
इस अभिमुखता के द्वारा हम इनके व्यक्तित्व को जान सकते हैं । व्यक्ति से जो सिद्धान्त निकलता है, उसमें उसकी प्रकृति और अभिमुखता प्रमुख कारण बनते हैं। कौन व्यक्ति किस सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है. यह उसकी प्रकति. स्वभाव और अभिमुखता पर बहुत निर्भर करता है। प्रेरणा
• 'दूसरा पेरामीटर है—प्रेरणा । प्रेरणा क्या रही है ? व्यक्ति किसी प्रेरणा से प्रेरित होकर ही काम करता हैं । जैसी प्रेरणा होती है, वैसा ही वह काम करता है।
महावीर की प्रेरणा थी परमार्थ । अर्थ के साथ तीन कोटियां बन जाती हैं—स्वार्थ, परार्थ और परमार्थ । महावीर की प्रेरणा है परमार्थ, परम अर्थ को प्राप्त करना। परम अर्थ का भारतीय चिंतन में अर्थ रहा-मोक्ष, बंधनमुक्ति । बंधनमुक्त होना परम अर्थ को प्राप्त करना है।
महात्मा गांधी की प्रेरणा भी यही है। गांधी भी अपना अंतिम लक्ष्य मोक्ष मानते
मार्क्स के पीछे प्रेरणा है करुणा की। मार्क्स एक अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ बहुत करुणाशील और संवेदनशील व्यक्तित्व हैं । हिन्दुस्तान में सर्वोदय के विचारकों ने उन्हें ऋषितल्य माना है । वे गरीबी की पीड़ा और यातना भोग चुके थे। उनके
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