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महावीर, मार्क्स, केनिज और गांधी सिद्धान्त और व्यक्तित्व, मंत्रदाता और मंत्र, सूत्रदाता और सूत्र-इन दोनों का परस्पर गहरा सम्बन्ध है । सिद्धान्त की चर्चा करें तो सिद्धान्त के प्ररूपक की चर्चा करना भी आवश्यक है। सिद्धान्त के प्ररूपक की चर्चा करें तो सिद्धान्त की चर्चा करना भी आवश्यक है। सिद्धान्त की चर्चा करना सरल है, किन्तु सिद्धान्त के प्रतिपादक की चर्चा करना कठिन है । सिद्धान्त को अध्ययन के द्वारा जाना जा सकता है, किन्तु व्यक्ति को अध्ययन के द्वारा जाना जा सकता है, यह एकान्तत: कहना बड़ा कठिन है । व्यक्ति जितना दुर्गम होता है, सिद्धान्त उतना दुर्गम और दुर्बोध नहीं होता। आज तक जिन लोगों ने व्यक्ति को पहचानने का प्रयत्न किया है, उनका निर्णय कितना सही रहा है, मैं नहीं कह सकता। बहत भूल होती है व्यक्तित्व को पहचानने में। भाव जगत् इतना गूढ़ है कि व्यवहार के आधार पर उसका सही आकलन नहीं कर सकते । यद्यपि मनोवैज्ञानिकों ने, व्यवहार मनोविज्ञान के अध्येताओं ने व्यवहार के द्वारा व्यक्ति को पहचानने का प्रयत्न किया है, किन्तु वह भी कितना सार्थक हुआ है, यह एक प्रश्न है । वस्तुत: कठिन काम है सिद्धान्त के आधार पर व्यक्ति की चर्चा करना। फिर भी व्यवहार के धरातल पर चर्चा करनी होती है।
चार व्यक्तित्व हमारे सामने हैं• भगवान् महावीर • महात्मा गांधी • केनिज . कार्ल मार्क्स
इन्हें दो कोटियों में विभक्त किया जा सकता है । महावीर और गांधी—ये एक कोटि के व्यक्ति हैं । मार्क्स और केनिज-ये दूसरी कोटि के व्यक्ति हैं। आध्यात्मिक व्यक्तित्व __महावीर शुद्ध आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं । बाहर और भीतर, व्यवहार और निश्चयदोनों में आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं। गांधी के भीतर में आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं और बाहर में राजनीतिक व्यक्तित्व। गांधी ने इस स्थिति को स्पष्ट करने के लिए बहत
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