SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गरीबी और बेरोजगारी ७५ कम बचता है। जब तक यह कब्जा करने की बात, छीनने की बात रहेगी, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। नए मानव का सृजन यदि हम कुछ होना चाहते हैं, कुछ पाना चाहते हैं या कुछ बनना चाहते हैं तो रास्ता दूसरा होगा। अगर संग्रह करना चाहते हैं तो रास्ता दूसरा होगा। ये दो भिन्न रास्ते हैं। इसलिए हम पुनर्विचार करें । अर्थशास्त्र को धर्मशास्त्र या अध्यात्मशास्त्र के परिपार्श्व में रखें। यह इसलिए आवश्यक है, जिससे अर्थशास्त्र अपने ढंग से संचालित हो, किन्तु धर्मशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र की छत्रछाया में संचालित हो । अर्थशास्त्र, मानसशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र-इनको एकान्तत: काट कर न देखें। एक दूसरे पर एक दूसरे का जो प्रभाव है, उसे देखें, उसका अध्ययन करें, इस सचाई को जानें कौन-सा शास्त्र किस शास्त्र को प्रभावित कर रहा है। ऐसा होगा तो सचमुच एक नए अर्थशास्त्र की परिकल्पना फलित होगी। उसे क्रियात्मक रूप देने के लिए नए मानव का सृजन करना होगा। नया मनुष्य ही आज की उलझनों का समाधान खोज पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy