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महावीर का अर्थशाका आपको सही स्थिति जाननी हो तो मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) को मेरे साथ गां में भेजें। ये वहां चलकर स्वयं अपनी आंखों से गांव की स्थिति देखें।।
वास्तव में यह स्थिति है—करोड़ों लोगों को भरपेट खाने को नहीं मिलता। एक अन्तर अवश्य है और वह यह है-प्राचीन समय में आदमी गरीबी या भूख से मर जाता था। आज उसे मरने नहीं दिया जाता दुःख भोगने के लिए जिन्दा रखा जाता है । कोई मरता है तो सरकार के लिए खतरा पैदा होता है, निन्दा-आलोचना होती है। वह मरने के लिए स्वतन्त्र नहीं है और गरीबी भोगते हुए जिन्दा रहने के लिए अभिशप्त है। यह स्थिति है आज के आदमी की। इस स्थिति को तब तक नहीं बदला जा सकता, जब तक महावीर के इस सिद्धान्त 'स्वामित्व का सीमाकरण करो' को स्वीकार नहीं कर लिया जाता । संग्रह के परिणाम ___ आज के अर्थशास्त्रियों ने भी संग्रह के दो परिणाम बतलाए हैं— भूख और युद्ध । महावीर ने कहा- 'संग्रह मत करो।' अगर संग्रह का सीमाकरणा होता है तो गरीबी की समस्या सहज रूप से सुलझाई जा सकती है, बेरोजगारी की समस्या को भी सुलझाया जा सकता है। शेष रहती है जनसंख्या की समस्या। गरीबी कम होगी, पोषण ठीक मिलेगा तो जनसंख्या की समस्या भी नहीं रहेगी । मूल कारण है गरीबी
और गरीबी का प्रतिफल है जनसंख्या की वृद्धि। विकसित राष्ट्रों की स्थिति देखें। वहां जनसंख्या बढ़ाने का प्रयत्न हो रहा है। रूस में उन माताओं को पुरस्कृत किया गया, जो अधिक संतान पैदा करती हैं। जहां चीन और हिन्दुस्तान में परिवार नियोजन के प्रयत्न हो रहे हैं, वहां जर्मनी और विकसित राष्ट्रों में परिवार बढ़ाने का उपक्रम हो रहा है। अनुपात बढ़ रहा है __इस बात पर गम्भीरता से ध्यान दें-हम सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के परिवर्तन को बाह्य स्तर पर घटित करना चाहते हैं जबकि मनुष्य जीता है भीतर के स्तर पर । जब तक भीतर के स्तर का स्पर्श नहीं होगा, अन्तर्जगत को नहीं छुएंगे, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। जब तक संग्रह, लोभ और स्वार्थ की वृत्ति को बढ़ाने की बात रहेगी, गरीबी भी बराबर रहेगी। आंकड़े बताते हैं—विकसित राष्ट्रों में, अमीर राष्ट्रों में गरीबी का अनुपात बढ़ रहा है। अमेरिका में सतरह प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले हैं। यह अनुपात बढ़ता जा रहा है। क्योंकि वहां संपदा पर इतना कब्जा हो गया है कि दूसरों के लिए बहुत
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