SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गरीबी और बेरोजगारी ७३ जेब में जा रहा है। इतनी बड़ी असमानता की स्थिति में गरीबी मिटाने की बात हास्यास्पद-सी लगती है। गरीबी मिटाने की चाबी अमीर देशों के हाथ में है। वे चाहें तो गरीबी को मिटा दें, चाहें तो और बढ़ा दें। वे ऐसा क्यों चाहेंगे? प्रभुत्व की वृत्ति ___ मनुष्य की एक भावात्मक प्रवृत्ति होती है प्रभुत्व की, स्वामित्व और अधिकार की। रावण ने इन्द्र के पास अपना दूत भेजकर कहलाया-मुझे तुम्हारे राज्य की जरूरत नहीं है। मैं केवल यही चाहता हूं कि तुम मेरे स्वामित्व को स्वीकार कर लो, मेरे अधीन बन जाओ। फिर तुम चाहे जो करो। अकबर भी राणा प्रताप से यही चाहता था-एक बार महाराणा उसे सम्राट के रूप में स्वीकार कर लें। यह प्रभुत्व की भावना बहुत व्यापक है। जिनके पास आर्थिक साम्राज्य है, प्रभुसत्ता है, वे दूसरों पर अपना स्वामित्व स्थापित करना चाहते हैं। जो धनी बन गए, उनमें आपस में स्पर्धा है दूसरों का स्वामी बनने की। मानवीय संवेदना जागती तो ये अपराधिक स्थितियां विश्वव्यापी नहीं बनती। गरीबी की रेखा ___ जो धनी बने हैं, उनकी स्थिति भी कम दुःखद नहीं है। अमीरी से पैदा होने वाली बीमारियां उन देशों को अपनी लपेट में ले चुकी है। अमीरी ज्यादा हो, बीमारियां कम हों, यह कभी सम्भव नहीं। संपदा के विकास के साथ-साथ बीमारी की समस्या भी बढ़ती है। उसके साथ भावात्मक रुग्णता आती है। अमीरी और बीमारी-इन दोनों को कभी अलग नहीं किया जा सकता । एक ओर अमीर बीमारी भुगत रहे हैं तो दूसरी ओर गरीब भी बीमारी भुगत रहे हैं। अपोषण और कुपोषण उनके स्वास्थ्य को लीलते जो रहे हैं । गरीब देशों में आज गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले रोगों का अनुपात बहुत बड़ा है । एक निर्धारण कर लिया-गांव में लोगों को चौबीस सौ कैलोरी मिले और शहरी आदमी को इक्कीस सौ कैलोरी मिले तो संतुलन बना रहेगा। इससे कम कैलोरी मिले तो वह गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जीने वाली स्थिति होगी। आज गरीबी की रेखा के नीचे जीवन जीने वालों की संख्या गरीब देशों में, विकासशील देशों में बहुत ज्यादा है। गांवों की स्थिति बहुत वर्ष पहले की बात है। पूज्य गुरुदेव दिल्ली में विराज रहे थे। डा० राममनोहर लोहिया आए । लोहियाजी ने बातचीत के अनंतर कहा—महाराज ! हमारे देश में आज पच्चीस-तीस करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो समय खाने को नहीं मिलता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy