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महावीर का अर्थशास्त्र
और भाव के साथ है। मध्य एशिया या अरब देशों का उदाहरण लें। जब तक पैट्रोल नहीं निकला तब तक वहां का वातावरण गरीबी का रहा। पैट्रोल निकलने के बाद उनकी स्थिति एकदम बदल गई । आज दुनिया के अमीर देशों में उनकी गिनती है। राजस्थान का एक जिला है— उदयपुर - राजसमन्द । जब तक वहां मार्बल नहीं निकला था, बहुत सम्पन्नता नहीं थी । मार्बल उद्योग के बाद आज वहां सम्पन्नता बढ़ गई है। वस्तुतः कर्म से इसका इतना सम्बन्ध नहीं है, जितना परिस्थिति और वातावरण से है । इसलिए महावीर की व्यवस्था में गरीबी और अमीरी को कर्म या भाग्य से नहीं जोड़ा जा सकता। यह सारा निर्भर है व्यावसायिक कौशल और कर्तृत्व-कौशल पर ।
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दुर्भिक्ष की समस्या
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उस समय की एक त्रासदी थी दुर्भिक्ष । दुर्भिक्ष के समय विपदा आ जाती थी । बीसवीं शताब्दी में हम दुर्भिक्ष की भयंकरता की कल्पना नहीं कर सकते । बीसवा• शताब्दी में इतने साधन बन गए हैं कि दुनिया के किसी भू-भाग में दुर्भिक्ष आए, अकाल की स्थिति रहे, तो किसी भी स्थान से अनाज की सप्लाई की जा सकती है। यातायात और संचार के साधन इतने सुलभ हैं कि यह कोई समस्या नहीं रही। उस काल में तो दुर्भिक्ष के कारण भयंकर स्थिति बन जाती थी। पास में धन होते हुए भी मरने के लिए विवश होना पड़ता था। बीसवीं शताब्दी में मनुष्य ने इतनी क्षमता पैदा कर ली है कि वह एक स्थान से किसी वस्तु को दूसरे स्थान पर सहजता से पहुंचा सकता है।
संसाधन किस दिशा में
विश्व की सारी सम्पदा, सारे संसाधन गरीबी को मिटाने में लगते तो आज स्थिति बहुत भिन्न होती, किन्तु बीच में व्यवधान आ गए। जो सम्पदा है, वह मानव को सुखी या सम्पन्न बनाने की दिशा में नहीं लगी, संहारक अस्त्रों के निर्माण में लगी। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से भयभीत हो गया । शस्त्रों की होड़ सी लग गई । अभी-अभी यू० एन० डी० पी० की जो रिपोर्ट आई है, उसके आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि अर्थशक्ति और संसाधन किस दिशा में लग रहे हैं। आठ सौ मिलियन डालर प्रतिवर्ष सुरक्षा पर व्यय हो रहे हैं। अगर रुपयों में हिसाब करें तो चालीस लाख अस्सी हजार करोड़ या दो सौ अड़तालीस खरब रुपए सुरक्षा पर खर्च हो रहे हैं। मानव की सुरक्षा के लिए नहीं, अपनी भौगोलिक सुरक्षा के लिए इतना व्यय किया जा रहा है ।
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