________________
गरीबी और बेरोजगारी
उन्हें खोजने की सबका व्यावसायिक बुद्धि समान नहीं होती। इसलिए बेरोजगारी की बात सामने आती है। भाग्यवादी अवधारणा
एक धारणा रही भाग्यवाद की । हिन्दुस्तान और एशिया महाद्वीप में तो यह भाग्यवाद की धारणा प्रगाढ़ रही है। आदमी यह सोचकर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाएगा-परमात्मा की जैसी मरजी होगी, वैसा होगा या भाग्य में जैसा लिखा है, वैसा होगा, क्यों व्यर्थ में हाथ-पांव मारें? भाग्यवादिता की इस मनोवृत्ति ने गरीबी और बेरोजगारी की बढ़त में अपना योगदान दिया है।
महावीर अनेकान्तवादी थे, वे न केवल भाग्यवादी थे और न केवल पुरुषार्थवादी। उनके दर्शन में भाग्य और पुरुषार्थ—दोनों का समन्वय था। भाग्य भी काम करता है, किन्तु पुरुषार्थ में इतनी शक्ति है कि वह भाग्य को भी बदल सकता है। महावीर ने एक सूत्र दिया था—जैसा लिखा है, वैसा नहीं होगा। बहुत सारे दार्शनिक यह मानते थे—जैसा भाग्य में लिखा है, वैसा ही होगा। कोई इसे बदल नहीं सकता, कम ज्यादा नहीं कर सकता । किन्तु महावीर ने ऐसा सिद्धान्त प्रतिपादित नहीं किया। उन्होंने कर्मवाद के नए सूत्र खोजे और कहा--भाग्य हमारी प्रवृत्तियों को संचालित करने का एक कारण तो है, किन्तु वह एकछत्र कारण नहीं है। उसे भी पुरुषार्थ के द्वारा बदला जा सकता है। गरीबी और कर्म
हम यह मानकर न बैठे-गरीब के भाग्य में गरीबी लिखी है और अमीर के भाग्य में अमीरी लिखी है। व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से, अपने बौद्धिक बल और कर्तृत्व से अपार संपदा अर्जित कर सकता है। जिसे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव अनुकूल नहीं मिला, बुद्धि की अनुकूलता नहीं रही, पुरुषार्थ भी अनुकूल नहीं हुआ, वह आदमी गरीब रह गया। इसका भाग्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। बहुत सारे लोग भाग्य के आधार पर इसकी व्याख्या करते हैं, किन्तु महावीर ने इसे कभी मान्य नहीं किया कि अमीरी या गरीबी कर्म से होती है । वास्तव में पदार्थ का योग होना बाह्य निमितों पर ज्यादा निर्भर है, वह अपने कर्मों पर निर्भर नहीं है। .
जैनदर्शन में इस प्रश्न पर काफी गम्भीरता से चिन्तन हआ है और आज भी कुछ विद्वान् इस प्रश्न पर विमर्श कर रहे हैं-धन मिलता है, वह कर्म से मिलता है या और किसी कारण से मिलता है। जहां तक हमने चिन्तन किया है, भाग्य का, कर्म का धन की प्राप्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका सम्बन्ध द्रव्य, क्षेत्र, काल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org