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गरीबी और बेरोजगारा
धनी देश विकासशील देशों को मात्र पचास मिलियन की सहायता दे रहे हैं। यानी एक लाख पचपन हजार करोड़ रुपए सहयोग के रूप में दे रहे हैं। अब दोनों की तुलना सहज ही की जा सकती है। सहायता की राशि कितनी कम है और सुरक्षा पर व्यय की जाने वाली राशि कितनी ज्यादा है। आर्थिक विकास : अपराध
मनुष्य इमोशनल प्राणी है। उसके भीतर क्रोध, अहंकार, लोभ, भय—ये सारे इमोशन काम कर रहे हैं। गरीबी मिटाने की भावना भी कभी-कभी जागती है, पर इससे भी ज्यादा प्रबल जो इमोशन हैं, वे हैं भय और वासना के, अधिकार और लोभ के। ये इतने प्रबल हैं कि करुणा की भावना, संवदेनशीलता की भावना उत्पन्न ही नहीं होने देते। यदि वह उत्पन्न भी होती है तो उसे मद्धिम कर देते हैं। यून० एन० डी० पी० की रिपोर्ट में बताया गया है-एक सौ तिहत्तर राष्ट्रों में इकोनामिक ग्रोथ में अमेरिका का आठवां नम्बर है। किन्तु अपराध, बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि में अमेरिका नम्बर एक पर है। कुछ राष्ट्र है, जिनमें बलात्कार हत्याएं ज्यादा होती हैं। जर्मनी में पागलपन ज्यादा है। यह स्थिति विकसित राष्ट्रों की है। . ध्यान दे दोनों पर
हम जब तक आन्तरिक या भावात्मक स्थिति को साथ में नहीं जोड़ेंगे, तब तक गरीबी, बेरोजगारी और जनसंख्या वृद्धि की समस्या को सुलझाया नहीं जा सकेगा। केवल निमित्त और परिस्थिति पर चलें तो एकांगी दृष्टिकोण होगा और केवल आन्तरिकता पर चलें तो भी एकांगी दृष्टिकोण होगा। अनेकान्त की दृष्टि से दोनों का समन्वय करके चलें-मनुष्य भीतरी जगत् में क्या है और बाहरी जगत् में क्या है। भीतरी जगत् को भी बदलना है और बाहरी जगत् को भी बदलना है।
समाजवादी धारणा ने एक बड़ा काम किया था—पदार्थ के प्रति अनासक्ति का प्रयोग । बहुत अच्छी और सार्थक कल्पना थी—सम्पत्ति मेरी नहीं है, संपत्ति समाज की है, मेरा इस पर कोई अधिकार नहीं है। यह एक बहुत बड़ा महत्त्वपूर्ण दर्शन था
और है। साम्यवाद का रूप चाहे कुछ भी बना हो, किन्तु साम्यवादी के पीछे जो एक चिन्तन था, धारणा थी, उसका महत्त्व कभी कम नहीं होगा। ___महावीर के दर्शन और साम्यवाद की अवधारणा—दोनों की तुलना करें । महावीर कहते हैं...-न मे माया, न मे पिया, न मे भाया-मां मेरी नहीं है, पिता मेरा नहीं है, भाई मेरा नहीं है। धन मेरा नहीं है, मकान मेरा नहीं है। भार्या मेरी नहीं है, लड़की मेरी नहीं है । साम्यवाद ने प्रयोग किया। एक बच्चा जन्मा और परिवार से
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