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गरीबी और बेरोजगारी महावीर ने कहा- 'अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे'—मनुष्य अनेक चित्त वाला है, नाना प्रकार की क्षमता वाला है। योग्यता में विभेद है । बौद्धिक क्षमता, व्यावसायिक क्षमता, अर्थार्जन की क्षमता, व्यवहार की क्षमता, सबमें समान नहीं होती । प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न क्षमता वाला है, इसलिए समानता हमारा एक आदर्श हो सकता है, मौलिक स्तर पर समानता की बात हो सकती है। किन्तु व्यावहारिक स्तर पर, पर्याय के स्तर पर समानता की बात संभव नहीं है। प्रश्न आर्थिक समानता का
महावीर ने कहा--णो हीणे नो अइरित्ते- कोई हीन नहीं है, कोई अतिरिक्त नहीं है।
यह निश्चयनय की वक्तव्यता है, अंतिम सत्य का निरूपण है। किन्त जहां पर्याय का जगत् है, व्यवहार का जगत् है, वहां एक व्यक्ति हीन भी है, अतिरिक्त भी है। योग्यता सबमें समान नहीं होती। इसलिए आर्थिक समानता की बात एक यांत्रिक रूप में ही सोची जा सकती है, वास्तविकता के धरातल पर नहीं।
वर्तमान अर्थव्यवस्था के सामने चार प्रश्न हैं--- • गरीबी को मिटाना • जनसंख्या की वृद्धि को रोकना • पर्यावरण में सुधार करना
• बेराजगारी का उन्मूलन करना। जनसंख्या
गरीबी और पर्यावरण के बीच में है जनसंख्या वृद्धि । आबादी बढ़ती है तो गरीबी भी बढ़ती है, पर्यावरण भी दूषित होता है। सबसे पहली बात है जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण कैसे हो? इसके लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न किए गए, किए जा रहे हैं, किन्तु जनसंख्या की वृद्धि पर अंकुश नहीं लग पाया। आबादी निरन्तर बढ़ती जा रही है। कुछ वर्ष पहले हिन्दुस्तान की आबादी अस्सी करोड़ के लगभग थी। अब नब्बे करोड़ को भी पार कर रही है । कहा जा रहा है-हिन्दुस्तान इक्कीसवीं
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